मंगलवार, 8 अगस्त 2023

ऋचा जैन

निमकी की छाती

निमकी को बुस्शर्ट पहनने का बड़ा शौक 
भैया जैसी, छोटू जैसी 
समीज हाफ़ पैंट में खोंस   
एकदम टशन से बाहर निकलती कंचे-गोली खेलने 

बाज़ू वाली दीदी बोली,
निमकी अब तू बुस्शर्ट न पहनाकर 

निमकी कनफ़्यूज़्ड

कैंची साइकिल चला चौराहे से गुज़री तो
आवाज़ें आईं - जल्दी से और बड़ी हो जा निमकी 

निमकी आतंकित

चीटी-धप में धमकी तो छाती हिली और दुखी 
ये हो क्या रहा है!
छाती में क्या उग रहा है? 
निमकी हैरान-परेशान 

रात उसे भाए - लेटे तो छाती सपाट,
निमकी खुश - अरे वाह, गायब! 
पर सुबह उठते ही वापस

समीजें थीं ढीली तो 
निमकी पहनी छोटू की कस्सी-कस्सी बनियाइन
दब भी जाए, दरद भी ना हो 

माई बहुत व्यस्त घर-भर के रोटा-पानी में
माई थी भी दुबली-पतली, शादी के कपड़ों के संग पहली ब्रा खरीदी थी
पर निमकी तो माँ पे न गई थी

माह-दर-माह समस्या बढ़े
छाती जबसे बढ़ी तब से सब कुछ गड़बड़ 
बस-ट्राम में धक्का-मुक्की बढ़ गई 

टिकली के तो कोई प्रॉब्लेम नहीं 
वो तो मज़े से पीछे बस्ता टाँगे
निमकी के लिए बस में बस्ता उसका कवच 
 
पूरी जी-जान लगा दी गणतंत्र दिवस की परेड के लिए 
चुन भी ली गई निमकी
दूसरे राउंड में टीचर ने पास से जाने क्या देखा 
बोलीं कुछ नहीं, पर निमकी बाहर
 
निमकी सुपर कनफ़्यूज़्ड 

समय निकला 
अब निमकी ब्रा पहनती है 
जब टिकली साथ जाती है
कभी कैरम-बोर्ड सुनाई दे जाता है, कभी मैनचेस्टर तो कभी मॉस्कीटो बाइट्स 

टिकली भी कनफ़्यूज़्ड है 

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उस क्षण

उस घड़ी जब मैंने प्रेम जाना और जिया 
उसके आदि और उपरांत और रह भी क्या गया,
कान्हा 
क्यों मिलो तुम मुझसे और मैं तुमसे - उसके बाद 
उस क्षण में ब्रह्मांड का प्रेम था
उस क्षण ब्रह्मांड प्रेम में था 
उसके पूर्व और पश्चात मैं और तुम 
संसार की दृष्टि में एक काल देश में हुए भी
तो निरर्थक है रे 
नहीं जानते कि दे चुका है तू सब कुछ उस क्षण - तू रिक्त है रे अब 
नहीं जानते, तू ले चुका सब कुछ मेरा उस क्षण - तू तृप्त है रे अब 
प्रेम में भुने, हम न जले न अधपके
आँच थी, न अधिक - न कम
क्यों आऊँ मैं द्वारिका या तुम वृंदावन

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ग़ज़ल

कैसी घिसी पिटी सी बातें चाँद में तुम हो फूल में तुम  
आँखें कहाँ-कहाँ से फेरूँ तिनके में तुम धूल में तुम  

इंजन जैसे धक-धक करता हर पल छोड़े काला धुआँ
कोयले जैसे ठसे हुए हो दिल कम्बश्चन फ़्यूल में तुम
 
गुणा भाग मैं जितना कर लूँ समीकरण न बदले है  
दर कितनी भी घटा-बढ़ा लूँ ब्याज में तुम मूल में तुम  
 
मन चाहे है जाल बिछाना फँसा तुझे मैं संग फँसूँ 
भोली कुतर-कुतर से करते चाह-जाल को धूल में तुम
 
बस पकड़ी की 
हाँप में तुम हो ‘ऋचा’ बगल की सीट में भी
ध्यान धरूँ तो आ धमको फ़ंतासी ऊलजलूल में तुम

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   ऋचा जैन

जबलपुर, मध्य प्रदेश में जन्मी ऋचा जैन ने अभियांत्रिकी में शिक्षा ग्रहण की है। वर्तमान में वे लंदन में तकनीकी विशेषज्ञा के पद पर कार्यरत हैं। उनके काव्य संग्रह 'जीवन वृत्त, व्यास ऋचाएँ' भारतीय उच्चायोग लंदन से लक्ष्मीमल सिंघवी अनुदान योजना के तहत सम्मानित हैं। आरंभिक जर्मन भाषा के लिए बच्चों की किताब 'श्पास मिट एली उंड एज़ी' 2014 में गोयल एंड गोयल से प्रकाशित है तथा हिंदी एवं अँग्रेज़ी पत्रिकाओं, वेब साइट्स एवं संकलनों में उनकी कविताएँ प्रकाशित हैं।

8 टिप्‍पणियां:

  1. 'निमकी की छाती' में आदरणीया ऋचा जी की सच लिखने की बेबाकी प्रभावित करती है। मुझे 'उस क्षण' बहुत पसंद आई। उस एक क्षण में प्रेम से सराबोर ब्रम्हांड के बाद, अब लेन देन के लिए प्रेम का बचा ही नहीं रहना वाह! कवयित्री को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।

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  2. नारी तन में उम्र के साथ होने वाले परिवर्तन और उसकी मनःस्थिति को आपकी कलम ने सहजता और बेबाकी से उकेरा है। गज़ल का गर शेर बेहतरीन। हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आपको ऋचा जी

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  3. पहली कविता कहानी के रूप में होती तो अधिक रुचिकर होती,दोनों रचनाएं अच्छी हैं

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. यथार्थ को दर्शाती 'निमकी की छाती' तो प्रेम की अनुभूति को सहजता से व्यक्त करती 'उस क्षण' - दोनों ही कविताएँ बहुत अच्छी लगीं। ग़ज़ल के तो क्या कहने! ऋचा, आप यूँ ही लिखती रहें। सार्थक लेखन की शुभकामनाएँ और इस उपलब्धि के लिए बधाई।

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  6. बधाई हो ऋचा जी..किशोर अवस्था के परिवर्तन के उहापोह में उलझी निमकी के अंतर्द्वंद्व को दर्शाती यथार्थ परक कविता हृदयस्पर्शी लगी। ग़ज़ल के अंदाज.. बहुत खूब। क्षण.. हृदय के भाव उकेरती कविता।

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  7. कैसी घिसी पिटी सी बातें चांद में तुम हो फ़ूल में तुम, आंखें कहां कहां से फेरूं तिनके में तुम फूल में तुम... बहुत सुंदर अच्छा कहा है ग़ज़ल में नए बिंब यथार्थ बिल्कुल अलहदा शब्दावली को प्रयुक्त किया है स्तुत्य है अभिनंदन ऋचा जैन जी
    निमकी की बुस्सर्ट और उस क्षण भी अच्छी रचनाएं हैं बधाई

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