बुधवार, 5 फ़रवरी 2025

जसवीर त्यागी

1. गेहूँ


गेहूँ से भरी बैलगाड़ी
मंडी जा रही है

रास्ते में
गेहूँ के कुछ दाने
धरती पर गिर गये हैं

बैलगाड़ी में भरे दानें
भावुक हो रहे हैं

धरा पर छूट गए दानों को देखकर
बिछुड़न की पीड़ा में भीग रहे हैं

मिट्टी दानों की माँ है
और बाज़ार साहूकार

दुनिया में कौन है?
जो अपनी माँ से बिछुड़कर
साहूकार की शरण जाना चाहेगा।
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2. कारागार 


घर में कोई सामान रखकर भूल जाता हूँ
खोजने पर भी
जब नहीं मिलता
तब पत्नी से पूछता हूँ

वह अपनी जादुई निगाहों से
सामान को प्रकट कर देती है
मेरे चेहरे की खुशी
उस समय देखते ही बनती है

पढ़ते-पढ़ते कोई प्रसंग याद आता है
उससे जुड़ी कोई पुस्तक
या रचनाकार को याद करता हूँ

बार-बार के याद करने पर भी
स्मृति को हाथ से छूटी हुई बाल्टी की तरह
कुँए में गिरते हुए देखता हूँ

तब बिटिया झट से उस पुस्तक या लेखक को
सामने लाकर खड़ा कर देती है
मैं बुझे हुए चिराग-सा 
रोशनी से जगमगा उठता हूँ

स्त्रियाँ न हो जीवन में
तो यह दुनिया
किसी कारागार से कतई कम नहीं लगती।
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 3. रंग


मेरे घर की खिड़की से
एक हरा पेड़
और नीला आसमान दिखता है

हरा और नीला रंग
मेरे रक्त के लाल रंग को
दुरुस्त रखते हैं।
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4. नयन


जाड़ा आने पर 
माँ आँगन में 
एक खाट पर बैठ जाती है 

प्रातः की सुनहरी धूप 
माँ के चेहरे पर विराजती है 

उस समय 
माँ व धूप को देखना
आत्मीय लगता है 

जिंदगी के दो नयन हैं 
माँ और धूप

जिनसे मैं
इस जगत को देखता हूँ।
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5. रोटी की सुगंध 


सड़क किनारे पटरी पर, दो स्त्री- पुरुष
रेहड़ी पर रोटी सब्जी बना रहे हैं 

स्त्री के छोटे-छोटे हिम्मती हुनरमंद हाथ 
तेज गति से गोलाकार रोटियाँ बेल रहे हैं 
पुरुष खाली थालियों को भरने में मगन हैं

तवे पर सिकती रोटियों की गंध 
हवा में घुल रही है धीरे-धीरे 
जैसे धीरे-धीरे सब्जी में घुलता है नमक 

रोटी की गंध 
संसार की प्रिय गंधों में सबसे ऊपर है 

चम्मच,कटोरी,थाली और चिमटे की आवाज़ 
भूखे आदमी को 
भोज का आमंत्रण दे रही है 

रेहड़ी के इर्द-गिर्द 
चाव से भोजन कर रहे हैं मेहनत कश-मजदूर 
भोजन करता हुआ आदमी 
हर भाषा में श्रेष्ठ कविता है 

रोटियाँ सेंकती स्त्री और भोजन करते लोग 
दूर से ही चमकते हैं 
ज्यों चमकती है चूल्हे में आग।
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6. लेखन-प्रक्रिया 

लेखक 
जब लिख नहीं रहे होते 

तब भी 
लेखन-प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं 

जैसे खाली पड़े खेत 
तैयार करते हैं खुद को 
अगली फसल के लिए 

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जसवीर त्यागी 







                               



जसवीर त्यागी जी दिल्ली विश्वविद्यालय के राजधानी कॉलेज में प्रोफ़ेसर हैं। वे निरंतर हिंदी साहित्य में लेखन कार्य करते रहे हैं। साप्ताहिक हिंदुस्तान, पहल, समकालीन भारतीय साहित्य, नया पथ, आजकल, कादंबिनी, जनसत्ता, हिंदुस्तान, राष्ट्रीय सहारा, वसुधा, इंद्रप्रस्थ भारती, नई दुनिया, नया जमाना, दैनिक ट्रिब्यून आदि पत्र-पत्रिकाओं में इनके लेख व कविताएँ प्रकाशित होती रही हैं।'अभी भी दुनिया में'(काव्य संग्रह), कुछ कविताओं का अँग्रेज़ी, गुजराती, पंजाबी तेलुगू, मराठी, नेपाली भाषा में अनुवाद, 'सचेतक और डॉ. रामविलास शर्मा' (तीन खंड- संकलन संपादन), रामविलास शर्मा के पत्र, रामविलास शर्मा के पारिवारिक पत्र (संकलन- संपादन) आदि पुस्तकें अस्तित्व में आ चुकी हैं। त्यागी जी हिंदी अकादमी दिल्ली के नवोदय लेखन पुरस्कार से भी सम्मानित हैं।
ईमेल: drjasvirtyagi@gmail.com

           

9 टिप्‍पणियां:

  1. कवि हमेशा ही छोटे छोटे जीवन सत्यों में छिपे बड़े बड़े मूल्यों को खोज पाता है
    सुखद है इन कविताओं को पढ़ना !

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  2. सहज सरल भाषा में लिखी गई अनमोल कविताएं..

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  3. सुंदर रचनाएं हैं।

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  4. सहज एवं सुखद कविताऐं जिनमें जीवन का सार छिपा है ।

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  5. जसबीर त्यागी की कविताओं की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि ये बनावटी नहीं लगतीं. समकालीन कविता उस जीवन का अवशेष है जहाँ जीने की लालसा और समय की सहजता के साथ जीवन इतना मुश्किल नहीं था। एक साधारण दुनिया जहाँ परस्पर संवाद एवं सामंजस्य सहजता से प्राप्त था किन्तु अब कौन किससे बतियाए बिना मतलब के! ऐसी बाजारवादी प्रवृतियों से मिली खिन्नता एवं असहजता ने कवि जसवीर त्यागी को कविता रचने के लिए या तो प्रेरित किया होगा या मजबूर किया होगा. सुंदर कविताएँ.

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  6. कवि का ऑब्जर्वेशन कमाल का है। इतनी सूक्ष्म वस्तु स्थिति को देखना और उसे शब्दों के सहज प्रवाह में लाना साथ ही देखे हुए को एक अर्थ तत्व प्रदान करना , इन कविताओं की विशेषता है। कवि शुरुआत बड़ी सहजता से करता है पर अंत तक आते आते एक आश्चर्य भाव जगा जाता है। मारक कविता के लिए ज़रूरी नहीं कि बड़े बड़े शब्द जानबूझकर इस्तेमाल किए जाएं, सहजता से कही गई बात का कोई सानी नहीं, इन कविताओं को पढ़ते हुए ये भी पता चलता है।

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  7. भोजन करता हुआ आदमी
    हर भाषा में सर्वश्रेष्ठ कविता है।
    सुंदर पंक्तियाँ। बधाई।

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  8. जसवीर जी की कविताओं वैसी ही सादगी और संप्रेषणीयता है जैसी कवि भवानी प्रसाद मिश्र की कविताओं में रही हैं

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  9. किसी ने क्या खूब ही लिखा है, मैंने सोचा आप लोगो के साथ भी शेयर कर लूँ अक्सर सोचता हूँ ! तुम्हारा व्यक्तित्व ही तो है जो मुझमें जीवन ज्योति बन कर प्रज्वलित है। तुम्हें चाहता हूं,और स्वयं को पा लेता हूं।❤️❤️

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