1. पेड़ हो जाना
तो देखना
वहाँ उग आया है
एक पेड़
पर फूल नहीं आते उसमें
आती है सिर्फ पत्तियाँ
नहीं उठती उनसे कोई महक
वह कहती है हर उससे
जो बारिश और ताप से बचने
खड़े हो जाया करते उसके पास
प्रेम करने से पहले
दस बार सोचना
प्रेम करना
प्रतीक्षा करना है
अनंत काल तक
और फिर पेड़ हो जाना है।
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2. शाम का आसमान
शाम का आसमान
कुछ रंग-बिरंगा
कुछ धुँधला
कुछ स्याह
जैसे जाने की हड़बड़ी में हो
वह अपने घर
अपनी हथेलियों पर
लौटते पक्षियों की उड़ान देख
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3. चिड़ियाँ
चिड़ियाँ
पहचानती हैं बिल्लियों की आहट
वह रोक देती हैं फुदकना,
फड़फड़ाना और दाने चुगना
लैम्प पोस्ट के गहरे रंग में
कर लेती कैमफ्लाज
बिल्ली घात लगाए
बैठी दानों के पास
अंधेरा बढ़ा
बिल्ली किसी
और शिकार में आगे बढ़ी
चिड़िया फुर्र-फुर्र
चहकी चुगती दाने
लौटी घोसले में
ज़िंदगी की लड़ाइयाँ लड़ना
किसी पाठशाला में
नहीं सिखाया जाता
इसे जीतना पड़ता है
अपनी उड़ान के लिए
आसमान के लिए
चिडियाँ हमसे कितना
बेहतर जानती हैं।
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4. दरवाज़े
घर में बहुत से दरवाजे थे,
कुछ लकड़ी के
कुछ जाली के
और कुछ पारदर्शी
कुछ से छनकर आती थी रोशनी
और कुछ से आती थी हवा
जिनकी ओट से
हम देख सकते थे
एक-दूसरे को बिना छुए,
सिर्फ दूर से
भीतर तक भीगते हुए
धीरे-धीरे सारे दरवाजे
बंद होते गए
और चुनती गई दीवारें
अब कोई दरवाज़ा नहीं बचा
तुम्हारी ओर खुलने के लिए
बची हैं सिर्फ दीवारें
जिन पर बनाने लगे हैं
दीमक और मकड़ियाँ
अपने-अपने घर
जब सांस लेने की जगह बची न हो
और घर के बाहर खिंची हो
बहुत-सी रेखाएँ
जो हों लक्ष्मण रेखा से भी
अधिक खतरनाक
तब आहिस्ता-आहिस्ता
इन्हीं मकड़ी और दीमकों के साथ
जीने की आदत डालनी पड़ती है
बस, सालती है एक कसक
दरवाज़े और खिड़कियों वाले घर
कितने खूबसूरत हुआ करते थे!
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5. अनुपस्थिति
रोज नाश्ते की टेबल पर
तुम्हारी अनुपस्थिति
पूरा करना चाहती हूँ
अखबार के कुछ पन्नों से
बार-बार नजरें ढूँढती हैं
गुमशुदा के विज्ञापनों को
शायद हो कोई विज्ञापन
तुम्हारे नाम का
पर कहीं नहीं मिलता
तुम्हारा नाम
वह, जो कभी आया ही नहीं,
उसका जाना कैसा?
कैसे हो सकता है गुमशुदा वह?
फिर भी काले अक्षरों के बीच
ढूँढती रहती हूँ तुम्हारा नाम
प्रेम भी न जाने
कितने भ्रमों में जीता है
प्रेम में शायद
हर आदमी अभिमन्यु होता है
जिसे चक्रव्यूह में प्रवेश
करना तो आता है
पर आखिरी द्वार
तोड़ना नहीं आता
तो मैं भी कह सकती थी
विदा...
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6. रिश्ते
मुझे रिश्ते संभालने नहीं आए
पेड़-पौधों की तरह
उन्हें सींचना भी नहीं आया
पर कुछ रिश्ते
उम्र-दर-उम्र
वक़्त की चौखट पार करते गए
यकीन के साथ
कि सारी दुनिया
जब होगी खिलाफ
हम एक-दूसरे के साथ होंगे।
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7. तुम्हारे लिए
तुम्हारे लिए
जो सिर्फ शब्द थे
अधूरी इच्छाओं को
अभिव्यक्त करने का माध्यम
मुझे यकीन है
वो बाण तो नहीं थे
और न ही छर्रे
वरना एक ही आदमी
नहीं मरता
हर दिन
बार-बार
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