कि नमक रोटियों में
सुबह-शाम समुद्र से उठता है
सफ़ेद झक्क धुआँ
फिर भी समुद्र से नहीं आतीं
खाँसते-खाँसते बेदम होने वाली आवाज़ें
इस बार कहूँगा माँ से
चली चले मेरे साथ
और पकाकर देखे समुद्र पर रोटियाँ
जहां धुआँ होता है अत्यधिक
लेकिन नहीं होती भीतर तक हिला देने वाली खाँसी
माँ जब पकाएगी रोटियाँ
उनमें होगा स्वाद समुद्र का
और कितना किफ़ायती और स्वादिष्ट होगा
रोटियों का पकना कि संभव है
नमक रोटियों में अपने आप पहुँचे
समुद्र पर खाते हुए रोटियाँ
पहुँचेगा समुद्र अपने आप भीतर
और हम स्वाद का समुद्र हो जाएँगे एक दिन
_______________________________________
याद आए पिता
उस समय जबकि अपने अवचेतन में
मैं बढ़ रहा था गूलर के उस आकर्षक पेड़ की सिम्त
टकराया एक नुकीले पत्थर से और
उठी रक्त और दर्द की लहर
तिस पर बिन बताए अपने साथी को
मैं उस आनंद में डूबने के यत्न में बहोत
देखा उसने और चुपचाप हँसिए से
खुरचने लगा उसकी छाल
कूट के उसे पीसने लगा पत्थर पे
कि हो उठे वह रसायन कोई जादू
घाव पर लेप करते ही हुआ कोई चमत्कार
कि दौड़ पड़ी देह में एक ठंडक-सी
और खून का बहना एकदम बंद
मैंने धन्यवाद में की अपनी आँखें नत
और टिका के पीठ बैठ गया
याद आए पिता
___________________
जलस्वप्न
नारियल के उस बड़े दरख़्त में अटका है चाँद
और मैं जा सकता हूँ पेड़ की छाया से होता हुआ
जल जहाँ सबसे ज्यादा प्रसन्न है
जहाँ सबसे ज्यादा प्रसन्न है वह
गहरी नींद में वहाँ सोए हैं मेरे बच्चे
अँधेरा हालाँकि बढ़ रहा है चतुर्दिक
बच्चों की नींद में है जलस्वप्न
मैं लौट सकता हूँ आश्वस्त
बच्चों के स्वप्न में कहीं नहीं है ऑक्टोपस
बच्चों के नींद में बच्चों का स्वप्न है अब तक
_______________________________________
क्षमायाचना
हमारे दुःख इतने एक सरीखे थे कि
लड़ने के आलावा हमें
कुछ और सोचना नहीं चाहिए था
और जिसे हम मानके चले थे लड़ाई
वह दरअसल एक भ्रम था जो
बुना गया हमारे चारों तरफ़
बाज़ दफ़ा हम कहना चाहते थे बेटियों से
कि हमारी सिरजी दुनिया
उनके क़ाबिल नहीं
कि वहाँ अंत तक उनके हिस्से कुछ भी नहीं
एक ऐसी चुस्त घेराबंदी थी हमारे आसपास
कि जिसमें लड़ने के सारे रास्ते
बंद कर रखे थे पुरखों ने और
मान-मर्यादा के ऐसे क़ानून
कि पिंजरों में कैद पक्षी की-सी हालत
हम बार-बार बोलना चाहते थे कि
हमारी दुनिया से मुक्त हो जाना ही
अंतिम जुगत थी लेकिन इतना साहस भी न था
कि हमारे गले में लटके थे धर्मग्रन्थ
लगता तो यहाँ तक था हमें
कि बदल देंगे वह प्रारूप जिसमें
रेहन रख छोड़ें हैं हमने तुम्हारे सपने
हँसी और अकूत ताक़त
कि असंभव हो उठेगा दूसरा
कोई भी नामुआफ़िक क़ानून
हम सचमुच करना चाहते थे फ़तह
उस क़िले को जिसमें बंद था
तुम्हारी मुक्ति का बीज-मन्त्र
कभी मुक्त न हो सके अव्वल तो हम ख़ुद
कि इतना सख्त इंतज़ाम
हम गुनाहगार हैं
पहली फुरसत में छोड़ जाना हमें
कि हमें खोजना ही मुक्ति के रास्ते पहला क़दम
_________________________________________
कुबड़ा यथार्थ
तीन फुट की सीम
निहुरी-निहुरी कमर
एक पूरी उमर
कोयला ढ़ोती रही
भददू पैदा नहीं हुआ कुबड़ा
लेकिन मरा जब
सब कह रहे थे
मुश्किल था उसे सीधे बाँध पाना
मैंने एक कुबड़े यथार्थ को दिया कंधा इस देश में
_________________________________________
डोंगी का गीत
दुःख में हैं हम सब और कचोट मन में
कि पेड़ तुम्हें काटना पड़ा, करते हुए कोमल पत्तों को जुदा
काटीं शाखाएँ भी, निकालकर मज़बूत तना
छेदते रहे अस्त्रों से बीचों-बीच
जब टपक रहे थे हरे आँसू अनवरत पेड़ से
हमारे भीतर ललक थी डोंगी की
जूझते हुए ख़ुद से बने हमने डोंगी
हो सकते थे जब औरों की तरह प्रसन्न
व्यथित थे सबके-सब, तब भी
चीरते हुए समुद्र का विराट सीना
करेंगे शिकार अब मछली और कछुओं का
भर उठेगी डोंगी खुशबू से
लौटेंगे शिकार लिए पहले-पहल जब
पहुँचेंगे बिना चूक उस कटे-बचे पेड़ तक
और भेटेंगे शिकार का पहला हिस्सा, करेंगे क्षमायाचना
कि किया हमने जीवन नष्ट
रखेंगे सदैव ध्यान कि रखें डोंगी
बचे पेड़ के उसी कटे हिस्से के पास
कि वह महसूस कर सके
जुदा अंग का अपने पास होना
__________________________________
लीलाधर मंडलोई
सम्मान- पुश्किन सम्मान, रज़ा सम्मान, शमशेर सम्मान, नागार्जुन सम्मान, रामविलास शर्मा सम्मान, वागीश्वरी सम्मान हिंदी अकादमी सम्मान आदि|
फिल्म पटकथा, निर्माण एवं निर्देशन में भी प्रवृत|