संत नहीं होता ख़ुदा
संत नहीं होता ख़ुदाबहुत अज़ीज़ भी नहीं
ना ही वह
जिससे नहीं चलती दुनिया
ख़ुदा ख़ुदा है
अपनी पूरी ख़ुदाई के साथ
ग़म नहीं उसका साथ नहीं
अकेले ही
जीवन की जद्दोजहद क्या कम रूमानी है
सुना है यहीं कहीं होता है...
पर दिखता नहीं है ख़ुदा।
कौन है
दौड़ जाती है उत्सुकतापूरा करने जिज्ञासाओं की गहराई
उतरते पकड़ते दृश्यों की जंग
कुछ नई बनती परछाईयों की तर्ज़ पर
जिसे भावों ने कल्पना की डोर छोड़
अनगिनत संवेदनाओं संग
सीमा से बाँध उड़ा दिया है
आँसुओं की नमी नहीं देखती रास्ता जिनका
कौन है जो नियति से करता जिरह है
करता है तार तार परिंदों के पिंजरे
सपने भी उधेड़ने की बात करता है
लिखता है बारिश में धूप का होना
कौन है जो
खून से लथपथ चलता है तब तक
जब तक के
मंज़िल की निगाहों से न हो जाए बात।
समझा जा रहा है
कह लेने के लिए बहुत कुछसुन लेने के लिए बहुत कुछ
धीरज चाहिए
और चाहिए
यह भी कि चलता रहे
सब कुछ शत प्रतिशत उसी तरह
ठीक उसी तरह
जिस तरह
देखने की आदत
पडी हुई है
रहने की आदत रखी हुई है
बावजूद इसके समझा जा रहा है
बदलाव भूकंप है तब तक
जब तक तसल्ली न हो जाए कि सब कुछ ठीक है।
आँख का खुलना है बाकी
ठिठके पड़े हैं शब्द नहीं बनते आवाज़घुट रही है वेदना बदरंग अट्टहास देख
बंजर भूमि से नहीं की जाती उम्मीद किसी बीज की
ये धरती परती की उम्मीद जनती है
तप्त सूखी ज़मीं सोख लेती है विश्वास की बूंद भी
मृगतृष्णा दूर तक धोखे को आस देती है
चिलचिलाती धूप भी आसमान का कुछ नहीं बिगाड़ पाती
चाँद निकलता भी है तारे भी देते हैं जन्नत की गवाही
हादसे कुछ और दहशत की माँग रखते हैं
के आँख का खुलना है बाकी, बेखौफ भी होना है ज़र्रा ज़र्रा।
सफ़ेद और काले के फ़ेर में
उदासियों नेप्रश्न करने बंद कर दिए हैं
उत्तर का इंतज़ार
एक भोतर आज़ादी का सच है
छोड़ न दे आशा के कतरे
धोखा ही बदा हो फिर भी
कुछ तो है जो
अगली सुबह से इंतज़ार जुड़ता है
तस्वीरें
सच का भ्रम मात्र है
जहाँ आसमान धरती और हम
एक धरातल पर दिखते हो
आते ही
खत्म हो जाता है मन
व्यस्तताएँ जीवन चक्र के गुथे होने का
परिणाम कहती है
तमाम गर्दिशें
कुछ जमा साँसों का मेहनताना भर है
सफ़ेद और काले के फ़ेर में सभी
समय का गुज़र जाना देखते है।
रीता दास राम
एम०ए०, एम०फिल०, पी०एच०डी० (हिंदी) मुंबई विश्वविद्यालय, मुंबई।
कविता, लघुकथा, कहानी, उपन्यास, संस्मरण, स्तंभ लेखन, साक्षात्कार, लेख, समीक्षा द्वारा साहित्यिक सहयोग।
वेब-पत्रिका, ई-मैगज़ीन, ब्लॉग, पोर्टल में कविताएँ प्रकाशित। वेब रेडियो ‘रेडियो सिटी (Radio City)’ के कार्यक्रम ‘ओपेन माइक’ में कई बार काव्यपाठ एवं अमृतलाल नागर जी की व्यंग्य रचना का पाठ। इंटरनेशनल एवं नेशनल सेमिनार में प्रपत्र प्रस्तुति एवं पत्र-पत्रिकाओं में आलेख प्रकाशित।
बेहतरीन अभिव्यक्ति 💕💕💕🥰🥰
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार सरिता जी धन्यवाद. सादर.🌹🌹
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