यादें
दिन, महीने, सालकी गणना का बोझ!
जब अंक-गणितीय रूप में
दिल-दिमाग़ पर पड़ता है।
तो प्राचीनतम गाथा सा
गज़ब अहसास उभरता है।
वरना प्रत्येक भुलक्कड़ मन को
सांत्वना प्रतीति भ्रामक होती है;
मानो ये कल की ही बात है।
अँगूठी से गुज़रती
रेशमी चादर जैसी यादों में,
जाने कितने दशक
सिमट से जाते हैं।
अंकों की असीम दुनिया में,
किसी नन्हें से दशमलव की तरह।
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वह प्रत्येक स्त्री!
जो आत्महत्या करके मर गई;
कमल और कुमुदिनी थी।
और जो ज़िंदा रह गई
फिक्र में घर-गृहस्थी,
बाल-बच्चों की
वह औरत मुझे,
पोखर की हेहर/थेथर
की डालियाँ लगी।
जिन्हें लाख उखाड़ कर फेंको,
पुनः फफक कर बेतहाशा
चली आती है
जीवन की संभावना में,
पोखर के उरस जाने के बाद भी
मौजूदगी उनकी,
अचंभित कर जाती मुझे।
ज़िंदा कब्रगाह है,
उस पोखर के याद की,
संघर्षशील अस्तित्व बर्बाद सी।
स्त्रीत्व
डर कर, थक, ऊब करवह प्रत्येक स्त्री!
जो आत्महत्या करके मर गई;
कमल और कुमुदिनी थी।
और जो ज़िंदा रह गई
फिक्र में घर-गृहस्थी,
बाल-बच्चों की
वह औरत मुझे,
पोखर की हेहर/थेथर
की डालियाँ लगी।
जिन्हें लाख उखाड़ कर फेंको,
पुनः फफक कर बेतहाशा
चली आती है
जीवन की संभावना में,
पोखर के उरस जाने के बाद भी
मौजूदगी उनकी,
अचंभित कर जाती मुझे।
ज़िंदा कब्रगाह है,
उस पोखर के याद की,
संघर्षशील अस्तित्व बर्बाद सी।
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हेहर/थेथर - नहर, तालाब के किनारे उगने वाले हरे पौधे।
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सुन्दरियाँ
भगवान सृजते हैं,स्त्री-काया रूप में
नरम-नाज़ुक कोमल,
मोह, ममतामयी माया!
लालसामय समर्पित
तन-मन जो पाया!
अनंत शौक-शृंगार के प्रति,
वेश-भूषा, जीवन की गति,
प्रेम-उत्साह, भर-भर रति,
रस-रूप-रंग-शृंगार समृद्धि;
सुंदरियाँ!
और फिर सब गुड़-गोबर के लिए,
दे देते बैल रूप में मूर्ख-दुर्मति!
साथ जिसके सुख-चैन की क्षति,
लंगूर के हाथ में हूर संगति!
रही एक तरफ,
सारी दुनिया हाथ मलती।
दूजी तरफ,
आजीवन लड़ते-मरते दुर्गति।
सत्यानाश-सर्वनाश होती;
सुंदरियाँ!
संघर्षशील धूप में पिघलने के लिए
छोड़ दी जाती तिरस्कृत,
मोम की तरह नाजुक सुंदरियाँ!
मृतक-संस्कारों के नाम पर
श्रद्धांजलि में भेंट गुलाब की,
चढ़ा दी जाती ये कोमल पंखुड़ियाँ!
रेगिस्तानी बियाबान में बदल गई,
हरे-भरे उपवन जैसी सुंदरियाँ!
असत्य-सत्य की पुष्टि में,
साक्ष्यहीन करने की कोशिश;
मदांध-अहं की तुष्टि में!
भावुक स्त्रीत्व की अनंत शक्तियाँ!
नहीं बर्दाश्त कर पा रही दुनिया
तो विषकन्या रूप में
परिवर्तित हो रही सुंदरियाँ!
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नाकामियों को ढकने के;
अनगिनत बहाने,
रोने-धोने, सुबकने के।
रोष-पीड़ा से परे,
साहचर्य-युक्तमय जुड़े!
फुनगती पत्तियों का
अनुपम शृंगार लिए;
ये देखो सामने मेरे
चटकी हैं कलियाँ!
मुस्कुराती स्वागत में,
पलक-पाँवरे बिछाए,
अधोगामी भूमिस्थ;
टूटी डालियाँ!
जब देखती हैं,
दृष्टि मेरी सवालिया!
तो कहती हैं,
हँसती हुई,
"तू क्यों हतप्रभ?
प्राकृतिक-निष्पाप जीवन की
अनंत संभाव्यता लिए
पादप हूँ!
क्षीणकाय आदम नहीं।"
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जब भी बरसती हैं बूँदें!
गहन-अनुभूतियाँ जागीं,
अँखियों को मूंदें!
कानों के लिए
बड़ी चुनिंदा;
मात्र श्रव्यमय तीव्रता!
अनजाना बचपना,
जो मचलते हुए झूले!
काले बादलों के हिंडोले!
पड़ा विवश-औंधें!
जितनी गर्जना भरकर
बिजलियाँ कौंधें!
मन मेरा एकांत में खोजे,
दृश्यमान बिखरते खजाने;
जो आया लुटाने!
क्या पाओगे तुम लूट?
तत्क्षण, कुछ जिसमें है छूट!
अनुभवी अनुभूतियाँ,
परछाइयाँ, गहराइयाँ!
अँधेरे कोने में सिमटी,
देखती उजली दुनिया की
नटखट लड़ाइयाँ!
बौराई, प्रेममय प्रकृति औंघें!
उतनी ही गहराई से
उतरती, अलसाती,
नशीली अँखियों में मेरे,
ये जादुई नींदें!
तीव्र उन्माद भरी,
जब भी बरसती हैं बूंँदें!
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राजसी-तामसिक
किसी वासना के पुजारी!
शासक या कामी पुरुष के
स्वर्णिम रंग-महल की
शोभा बढ़ाती नग्न-मूर्ति
या चित्रकारी नहीं।
और ना ही,
अतिवादी उपभोग के
पालित-पोषित बाज़ार में
बहके दिमाग़ की उपज,
सुरा-सुन्दरी के सपनों में पलने वाला,
शराबी हाथ में छलकने वाला,
हर किसी के अधरों से लगने वाला,
कीमती रत्न-जड़ित स्वर्ण-रजत,
काँच या चीनी मिट्टी का प्याला!
मैं तो,
किसी खेतिहर मजदूर
या प्रकृति के प्रति संवेदनशील
जागृत, कोमल-भावुक-प्रेमोन्मत्त,
पारिवारिक-सामाजिक
उत्तरदायित्व लिए भद्र-पुरुष के
होठों की जूठन,
चाय का कुल्हड़ हूँ।
हाँ, ये मेरी निजता।
सम्मान जिसका,
हर किसी को करना होगा।
अनधिकृत प्रवेश वर्जित,
सावधान!
मलीन किसी मनो-मस्तिष्कमय
हस्तक्षेप से डरना होगा।
दे देते बैल रूप में मूर्ख-दुर्मति!
साथ जिसके सुख-चैन की क्षति,
लंगूर के हाथ में हूर संगति!
रही एक तरफ,
सारी दुनिया हाथ मलती।
दूजी तरफ,
आजीवन लड़ते-मरते दुर्गति।
सत्यानाश-सर्वनाश होती;
सुंदरियाँ!
संघर्षशील धूप में पिघलने के लिए
छोड़ दी जाती तिरस्कृत,
मोम की तरह नाजुक सुंदरियाँ!
मृतक-संस्कारों के नाम पर
श्रद्धांजलि में भेंट गुलाब की,
चढ़ा दी जाती ये कोमल पंखुड़ियाँ!
रेगिस्तानी बियाबान में बदल गई,
हरे-भरे उपवन जैसी सुंदरियाँ!
असत्य-सत्य की पुष्टि में,
साक्ष्यहीन करने की कोशिश;
मदांध-अहं की तुष्टि में!
भावुक स्त्रीत्व की अनंत शक्तियाँ!
नहीं बर्दाश्त कर पा रही दुनिया
तो विषकन्या रूप में
परिवर्तित हो रही सुंदरियाँ!
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चटकी कली
लाख बहाने गढ़ लेते हैं आदमी,नाकामियों को ढकने के;
अनगिनत बहाने,
रोने-धोने, सुबकने के।
रोष-पीड़ा से परे,
साहचर्य-युक्तमय जुड़े!
फुनगती पत्तियों का
अनुपम शृंगार लिए;
ये देखो सामने मेरे
चटकी हैं कलियाँ!
मुस्कुराती स्वागत में,
पलक-पाँवरे बिछाए,
अधोगामी भूमिस्थ;
टूटी डालियाँ!
जब देखती हैं,
दृष्टि मेरी सवालिया!
तो कहती हैं,
हँसती हुई,
"तू क्यों हतप्रभ?
प्राकृतिक-निष्पाप जीवन की
अनंत संभाव्यता लिए
पादप हूँ!
क्षीणकाय आदम नहीं।"
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अनुभूतियाँ
तीव्र उन्माद भरी,जब भी बरसती हैं बूँदें!
गहन-अनुभूतियाँ जागीं,
अँखियों को मूंदें!
कानों के लिए
बड़ी चुनिंदा;
मात्र श्रव्यमय तीव्रता!
अनजाना बचपना,
जो मचलते हुए झूले!
काले बादलों के हिंडोले!
पड़ा विवश-औंधें!
जितनी गर्जना भरकर
बिजलियाँ कौंधें!
मन मेरा एकांत में खोजे,
दृश्यमान बिखरते खजाने;
जो आया लुटाने!
क्या पाओगे तुम लूट?
तत्क्षण, कुछ जिसमें है छूट!
अनुभवी अनुभूतियाँ,
परछाइयाँ, गहराइयाँ!
अँधेरे कोने में सिमटी,
देखती उजली दुनिया की
नटखट लड़ाइयाँ!
बौराई, प्रेममय प्रकृति औंघें!
उतनी ही गहराई से
उतरती, अलसाती,
नशीली अँखियों में मेरे,
ये जादुई नींदें!
तीव्र उन्माद भरी,
जब भी बरसती हैं बूंँदें!
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मैं और मेरी कविता
मैं और मेरे शब्द!राजसी-तामसिक
किसी वासना के पुजारी!
शासक या कामी पुरुष के
स्वर्णिम रंग-महल की
शोभा बढ़ाती नग्न-मूर्ति
या चित्रकारी नहीं।
और ना ही,
अतिवादी उपभोग के
पालित-पोषित बाज़ार में
बहके दिमाग़ की उपज,
सुरा-सुन्दरी के सपनों में पलने वाला,
शराबी हाथ में छलकने वाला,
हर किसी के अधरों से लगने वाला,
कीमती रत्न-जड़ित स्वर्ण-रजत,
काँच या चीनी मिट्टी का प्याला!
मैं तो,
किसी खेतिहर मजदूर
या प्रकृति के प्रति संवेदनशील
जागृत, कोमल-भावुक-प्रेमोन्मत्त,
पारिवारिक-सामाजिक
उत्तरदायित्व लिए भद्र-पुरुष के
होठों की जूठन,
चाय का कुल्हड़ हूँ।
हाँ, ये मेरी निजता।
सम्मान जिसका,
हर किसी को करना होगा।
अनधिकृत प्रवेश वर्जित,
सावधान!
मलीन किसी मनो-मस्तिष्कमय
हस्तक्षेप से डरना होगा।
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जन्म- 1 जुलाई
बालिका उच्च विद्यालय गोमोह,धनबाद,झारखण्ड से सन 1995 में माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण। पंडित जवाहरलाल नेहरू इंटरमिडिएट कॉलेज गोमोह से सन 1997 में इंटरमिडिएट उत्तीर्ण। विनोबा भावे विश्वविद्यालय से स्नातक और स्नातकोत्तर अर्थशास्त्र में। IGNOU से सन 2017 में हिन्दी में स्नातकोत्तर उत्तीर्ण। सन 2020 में प्रकाशित काव्य संग्रह 'रेत पर नदी' है। सन 2022 में प्रकाशित द्वितीय काव्य संग्रह यह पुस्तक 'रे मन मथनियाँ' है। सन 2022 में ही तीसरी प्रकाशित। पुस्तक प्रथम गद्य संग्रह रूप में 'स्पर्शन : कुछ अपना-बेगाना सा' है। पहला संस्मरणात्मक उपन्यास - 'रमक : नन्हा बचपन' साहित्य कुञ्ज.नेट पर उपलब्ध है। विविध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित असंख्य रचनाएँ हैं।
बालिका उच्च विद्यालय गोमोह,धनबाद,झारखण्ड से सन 1995 में माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण। पंडित जवाहरलाल नेहरू इंटरमिडिएट कॉलेज गोमोह से सन 1997 में इंटरमिडिएट उत्तीर्ण। विनोबा भावे विश्वविद्यालय से स्नातक और स्नातकोत्तर अर्थशास्त्र में। IGNOU से सन 2017 में हिन्दी में स्नातकोत्तर उत्तीर्ण। सन 2020 में प्रकाशित काव्य संग्रह 'रेत पर नदी' है। सन 2022 में प्रकाशित द्वितीय काव्य संग्रह यह पुस्तक 'रे मन मथनियाँ' है। सन 2022 में ही तीसरी प्रकाशित। पुस्तक प्रथम गद्य संग्रह रूप में 'स्पर्शन : कुछ अपना-बेगाना सा' है। पहला संस्मरणात्मक उपन्यास - 'रमक : नन्हा बचपन' साहित्य कुञ्ज.नेट पर उपलब्ध है। विविध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित असंख्य रचनाएँ हैं।
वाह, कितनी बेहतरीन और सारगर्भित रचनाएँ रची हैं आपने 👏👏
जवाब देंहटाएंपढ़ कर मन ओत प्रोत हो गया 🤗🙏
बहुत-बहुत धन्यवाद बन्धु !आप रचनाओं की गहराई तक पहुँच सके।कविता सफल और सार्थक हुई।💐💐💐🙏
हटाएंमन को छूती हुई सारगर्भित कविताएँ
जवाब देंहटाएंसब आप जैसे विद्वतजनों का आशीर्वाद है ।मैं आभारी हूँ ।🙏🙏
हटाएंसारी कविताएं बेहद खूबसूरत और सारगर्भित है। "मैं और मेरी कविता" में रचियता ने अपने कलम को सावधान करते हुए मेहनत को चुना है। "स्त्रीत्व" ने मार्मिक चित्रण करते हुए अपनी संघर्षशीलता को हेहर थेथर कहकर चोट की है। अनुभूतियां, चटकी कली, सुंदरियां... में मार्मिक चित्रण दिखता है। और , यादें, निचोड़ ह... दशमलव की तरह!
जवाब देंहटाएंसरिता जी को साधुवाद!🙏🙏🌻
बहुत-बहुत आभार बहन!
जवाब देंहटाएंइतनी सुन्दर और सारगर्भित समीक्षा के लिए धन्यवाद! 💕💕💐💐
Adbhut akalpaniye shaandaar
जवाब देंहटाएं🙏🙏💐💐💐आभार .....
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