1. चाय और भाप
उन्हें चाय में दिलचस्पी थी
मुझे उसकी भाप में
और होटल और चाय के खेतों में
काम करने वाले लोगों में
मुझे उसकी भाप में
और होटल और चाय के खेतों में
काम करने वाले लोगों में
वे समझते थे कि
माचिस की तीली से आग निकलती है
मुझे पता था कि
उससे जान निकलती है
वे कवि होना चाहते थे
मैं कविता लिखना चाहता था
उन्हें बोलने में भरोसा था
मैं चुप रहने में यकीन रखता हूँ
वे कहते थे कि
पेड़ों से छाँह मिलती है
मैं कहता था कि
पेड़ों से कुल्हाड़ियों के हत्थे बनते हैं
पलंग, कुर्सियाँ, घर के दरवाज़े
और शवों के लिए लकड़ियाँ मुहैया होती हैं
उनका मानना था कि
घर सोने के लिए जाया जाता है
मैं मानता था कि घर जागने के लिए है
और अपने कपड़े बदलने के लिए
और वहाँ से कहीं और जाने के लिए
वे आँखों और कनखियों पर मरते थे
मुझे आँखों से नश्तर चुभते थे
वे दर्द से दर्द का इलाज करते थे
मैं दर्द में कराहता और रोता था
वे मुफ़्त की रोटियाँ तोड़ते थे
मैं पहले रोटियाँ बनाता
फिर उन्हें बेचता
और फिर अपना पेट भरता था
वे कविताओं के लिए
चाँद, सूरज, पत्ते, फूल, प्रेम और नदियाँ चाहते थे
मुझे लिखने के लिए
चाक़ू, ख़ंजर और नफ़रत चाहिए
हमारे सोचने के तरीक़ों में
ज़मीन और आसमान का फ़र्क़ था
और यह फ़र्क़ हम दोनों को
इसी ज़िंदगी से मिला था
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2. मृत्यु
मृत्यु मेरा प्रिय विषय है
लेकिन
मैंने कभी नहीं चाहा
कि मैं मर जाऊं
इतनी छोटी वजह से
जहाँ
केवल दिल ही टूटा हो
और
शेष
पूरी देह
सलामत हो
मैंने कभी नहीं चाहा
कि मैं मर जाऊं
इतनी छोटी वजह से
जहाँ
केवल दिल ही टूटा हो
और
शेष
पूरी देह
सलामत हो
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3. मुझे हैरत में डालो
ज़ालिमों मुझे गुस्से से भर दो
मैं किसी मजलूम के काम आऊं
रिंदों मेरा जाम पूरा भर दो
मैं बेहोश हो जाऊं
मैं बेहोश हो जाऊं
जानवरों मुझे दो मनुष्यता
मैं आदमियों के काम आऊं
मैं आदमियों के काम आऊं
औरतों मुझे दो करुणा
मैं कभी मैला न कर सकूं किसी का मन
मैं कभी मैला न कर सकूं किसी का मन
आशिकों मुझे पागलपन दो
मैं प्यार करूँ बदले में कुछ न चाहूँ
मैं प्यार करूँ बदले में कुछ न चाहूँ
उदासियों मुझमें जमा हो जाओ
मैं मुस्कराऊँ तो उसे अच्छा लगूं
मैं मुस्कराऊँ तो उसे अच्छा लगूं
किताबों मुझे सवाल दो
थकानों झपकियां दो
थकानों झपकियां दो
जमानों मुझे याद दो
दुनिया के तमाम जादूगरों
दुनिया के तमाम जादूगरों
मुझे हैरत में डालो
असानियों मुझे मुश्किलें दो
असानियों मुझे मुश्किलें दो
मैं फिर उठूं मैं फिर चलूं
चिताओं मुझे होश दो
चिताओं मुझे होश दो
मैं तैयार रहूँ
समय मुझे उम्र से भर दो
समय मुझे उम्र से भर दो
मैं बड़ा काम करूं
मैं मर जाऊं
मैं मर जाऊं
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4. धीमी दुनिया
न चाहते हुए भी मुझे
घोषित कर दिया गया
फिफ्थ जनरेशन का आदमी
जबकि मैंने चाहा नहीं था
फिफ्थ जनरेशन का आदमी
जबकि मैंने चाहा नहीं था
कि मैं इतनी जल्दी-जल्दी
गुजार दूँ अपने साल
मुझे चाहिए थी
एक बहुत धीमी दुनिया
तुमसे मिलने के लिए चाहिए था
तुमसे मिलने के लिए चाहिए था
एक लम्बा इंतजार
और एक रुका हुआ दिन
और एक रुका हुआ दिन
मैं बहुत धीमे-धीमे
जीना चाहता था
तुम्हारे साथ
इसलिए कि देर तक
तुम्हारे साथ चल सकूं
इतना कि तुम्हारा हाथ पकड़ने में
कई साल लग जाएं मुझे
इतना कि तुम्हारा हाथ पकड़ने में
कई साल लग जाएं मुझे
देर तलक टिका रहे
तुम्हारा सिर मेरे कांधों पर
और तुम्हारी नींद लग जाए
और तुम्हारी नींद लग जाए
मैंने कभी नहीं चाहा
कि दुनिया इतनी विराट हो जाए
कि उसकी महानता में
कि दुनिया इतनी विराट हो जाए
कि उसकी महानता में
गुम हो जाए हमारा सुख
जब तक उठकर बिस्तर की
सलवटें ठीक करता हूँ
दुनिया थोड़ी-सी और बदल चुकी होती है
मुझे तुमसे अलग करने में
दुनिया थोड़ी-सी और बदल चुकी होती है
मुझे तुमसे अलग करने में
इस दुनिया का भी हाथ है
यह जितनी तेज रफ्तार से भागती है
मैं उतना तुमसे दूर हो जाता हूँ
जबकि मैं चाहता था
मैं उतना तुमसे दूर हो जाता हूँ
जबकि मैं चाहता था
इस जन्म तुमसे प्यार करूं
और अगले जन्म में
करूं तुम्हारी प्रतीक्षा
पिछली शाम बैठा था
तुम्हारे साथ तो देख रहा था
घड़ी में कांटों की रफ्तार भी
घड़ी में कांटों की रफ्तार भी
कितनी बढ़ा दी गई है
कितनी जल्दी कट रहे हैं जनवरी-फरवरी
कितनी जल्दी आ रहे हैं दिसंबर
किसी भी दुनिया को इतना
भूखा नहीं होना चाहिए
कि वह वक्त को भी खा जाए
और उस प्यार को भी
जिसे कह देने का वक्त
कि वह वक्त को भी खा जाए
और उस प्यार को भी
जिसे कह देने का वक्त
अभी आया ही नहीं था।
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5. बिछड़ने की आशंकाएँ
मिल जाने में बिछड़ने की
कितनी आशंकाएँ हैं
नहीं मिलने से कितना
नहीं मिलने से कितना
बिछड़ना बच जाता
बेहतर होता कोई किसी से
मिलता-जुलता नहीं संसार में
चिट्ठियों में ही लिखा जाता मिलना
तो कितनी भाषाएँ बच जातीं
चिट्ठियों में ही लिखा जाता मिलना
तो कितनी भाषाएँ बच जातीं
कितने हाथ भूलते नहीं—
'मेरी प्रिय' और 'तुम्हारा अपना' लिखना
'मेरी प्रिय' और 'तुम्हारा अपना' लिखना
दुनिया में बचा रह जाता—
बहुत सारा कहना और सुनना
कितनी ख़ुशबुएँ
और स्पर्श बचे रह जाते लिखे जाने की बदौलत
बहुत सारा कहना और सुनना
कितनी ख़ुशबुएँ
और स्पर्श बचे रह जाते लिखे जाने की बदौलत
हमारे पास बहुत सारे ख़त होते—
रूमाल की तरह महकते हुए
अनजान छुअन ठिठुरती
काग़ज़ों में दर्ज होकर बच जाता प्रेम
रूमाल की तरह महकते हुए
अनजान छुअन ठिठुरती
काग़ज़ों में दर्ज होकर बच जाता प्रेम
कितने वाक्य होते—
तुम्हारे ज़िक्र से रँगे हुए
जिन्हें जब चाहता तब छूता और चूम लेता—
लिफ़ाफ़े खोलकर
सिर और आँखों में रख लेता तुम्हारे प्रेम-पत्र
तुम्हारे ज़िक्र से रँगे हुए
जिन्हें जब चाहता तब छूता और चूम लेता—
लिफ़ाफ़े खोलकर
सिर और आँखों में रख लेता तुम्हारे प्रेम-पत्र
कई हाथों में नहीं होती बारूद की गंध
और उँगलियाँ नहीं कसी जातीं पिस्तौल के ट्रिगर पर
सारे घुटे हुए दुःखों
और बर्बर यातनाओं की शिकायतें भेजी जातीं
और उँगलियाँ नहीं कसी जातीं पिस्तौल के ट्रिगर पर
सारे घुटे हुए दुःखों
और बर्बर यातनाओं की शिकायतें भेजी जातीं
पोस्टकार्ड में दर्ज प्रार्थनाएँ उछाल दी जातीं—
ऊपर आसमान में
और बदले में माँग ली जाती ईश्वर से लिखित अनुशंसा
पृथ्वी पर सुख से जीने
और सुख से मरने के लिए।
ऊपर आसमान में
और बदले में माँग ली जाती ईश्वर से लिखित अनुशंसा
पृथ्वी पर सुख से जीने
और सुख से मरने के लिए।
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नवीन रांगियाल
नवीन रांगियाल का जन्म 12 नवंबर 1977 में मध्य प्रदेश के इंदौर में हुआ। कई पत्र- पत्रिकाओं और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर इनकी कविताएँ प्रकाशित होती रही हैं। नवीन जी की 'इंतजार में 'आ' की मात्रा' कविता संग्रह 2023 में सेतु प्रकाशन से प्रकाशित है।
ईमेल: navin.rangiyal@gmail.com
सभी कविताएँ बहुत सुंदर हैं, लेकिन "मृत्यु" कविता ने विशेषरूप से प्रभावित किया।
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मैं मर जाऊं
इतनी छोटी वजह से
जहाँ
केवल दिल ही टूटा हो
और
शेष
पूरी देह
सलामत हो
मंजु मिश्रा (https://manukavya.wordpress.com)