1. झाड़ - फानूस
उन्होने अपने सजे – सजाए
ड्राइंग रुम में
लटका रखा है
अपने गाँव को,
झाड़ – फानूस की तरह
और जिए जा रहे हैं
पिछले चालीस सालों से
इसी मुगालते में,
कि हैं वह अब भी
गाँव में ही ।
वह आदमी
जो उम्र के चौथेपन में
प्रवेश कर चुका है ,
नहीं जानता कि
गाँव भी अब
वह और वहीं नहीं रहा ,
वह भी हौले हौले चलकर
शहर तक पहुँच गया है ।
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2. कुहरे – कुहासों का देश
क्या आपको नहीं लगता कि
यह पूरा देश कुहरे और कुहासों से
भरा है ?
यहां हर चीज़
अस्पष्ट और धुंधली
दिख पड़ती है,
क्या आपको नहीं लगता कि
यहां के लोग इसी धुंधलेपन के ‘शिकार’
अभ्यस्त हैं,
यहां हर चीज़
एक पारभासक शीशे में
कैद है?
क्या आपको नहीं लगता कि
यह भेंगी, चिपचिपी आँखों वालों
का देश है,
कि यहां के लोग
आधी-अधूरी चीज़ों को
देखने के आदी हैं.
क्या आपको नहीं लगता कि
चीड़ और देवदारू के ये
लंबे और चिकने पेड़
और सुंदर, अच्छे लगते
यदि यह कुहरा-कुहासा हट जाता.
क्या आपको नहीं लगता कि
आप अंधों के संसार में आने वाले
“नुनेज़”(1) हैं
कि उजाले की दुनिया के बारे में बताना
एक निहायत ही बेतुकी और बेहूदी बात थी
कि आपकी भी आंखें
निकालने का सुझाव था
ताकि आप भी इनकी ही तरह
कुहरे और कुहासे को
अपनी ज़िंदगी में
उतार लें .
नोट :
(1) नुनेज़ : एच. जी. वेल्स की कहानी “ द कंट्री आफ द ब्लाइंड ” का मुख्य पात्र।
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3. खजूर का पेड़
जी हाँ ! मैं जिक्र कर रहा हूँ,
उसी आदमी का
शहर में जिसके
नाम की मुनादी है ।
जी हाँ ! वह मरा नहीं है,
यद्यपि काट डाले हैं
आपने हाथ उसके
किन्तु आ खड़ा होता है वह
मुस्कराते हुए,
दरवाजे पर
आपके अभिवादन में
जोड़े हुए, अपने कटे हाथों को
त्रिभुज की ज्यामिति में ।
बीड़ी फूंकता हुआ
अब भी मिलेगा कतार में
सबसे आगे
कटे हुए बांह को
उछालता हुआ।
काट डालिए पैर इसके,
वह एक पैर से उचक कर
चलता हुआ
समाज मे आदर्श बन जाएगा ,
और बैठ जाएगा धरने पर
राशन कोटा के सामने ।
फोड़ डालिए इसकी
एक आँख,
यह तलाश लेगा
अपने लिए
दस नए कंधे
और तैयार कर देगा
उन्हें अपनी तरह।
सर! ऐसे आदमी बड़े चीमड़
और जीवट वाले होते हैं,
काट दीजिए उनकी
बोटी-बोटी और
छितरा दीजिए
रेगिस्तान में ,
ये खजूए के पेड़ बनकर
उग आएंगे,
बालू की तपिश से झुलसे
मुसाफिरों की छांव के लिए ।
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4. उपलब्धि
उम्र के बीस साल तक वह
झल्लाए हुए कुत्ते की तरह सनका रहा’
हर चोर – उचक्के पर
भौंकता हुआ,
लोगों को वह पसंद नहीं था ।
उम्र के तीस साल में
हर मोड़, हर नुक्कड़ पर
चीखा,
चिचियाता फिरा जुलूस के
आखिरी छोर पे,
मसल डाला कितने ही
सिगरेट के टुकड़ों को
बड़ी बेरहमी से
बुर्ज़ुआ की गर्दन
की तरह,
अब लोग उससे कट-से गए ।
उम्र के चालीस साल में
वह
सिर्फ अब बुदबुदाता रहता है
अपने-आप में ही
सड़क के किनारे
धूल में नजरे गड़ाए ,
उसकी आँखों में एक
गहरी रिक्तता
और खामोशी है;
फटी-फटी आँखों से
शायद खुद को
कोसता मर गया वह
एक दिन
और लोग खुश हैं ।
सामान्य एक आदमी को
असामान्य बनाकर
मार डालना हमारी
उपलब्धि है ।
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5. क्यों होता है ऐसा
खुद के विरोध में
क्यों होता है ऐसा
जब आदमी उठ खड़ा होता है
खुद के ही विरोध में,
जब उसे अपनी ही सोच
बेहद बेतुकी और भौंडी
लगने लगती है?
क्यों होता है ऐसा
जब आदमी
सुबह की स्वच्छ और ताजी हवा में
घूमने के बजाए
कमरे के घुटे हुए, बदबूदार सीलन में,
चादर में मुँह औंधा किए
पड़ा रहता है?
क्यों होता है ऐसा
जब आदमी साँपों की हिश-हिश
सुनना पसंद करने लगता है?
आखिर वह कौन-सी
प्रक्रिया है
जो उगलवा लेती है
शब्द उससे
खुद के ही खिलाफ़?
क्यों वह विवश हो जाता है
साँप की तरह
अपना केंचुल छोड़ने पर?
आदमी की आखिरी छटपटाहट
कसमसाकर
आखिर क्यों तोड़ती है
अपने ही बनाए
मर्यादा-तट को,
भागता है वह
अपने-आप से ही
गोरख (1) की हताशा लिए .
आ क्यू (2) की उझंख
नीरवता में|
नोट :
(1) हिन्दी कवि गोरख पांडे संदर्भित है ।
(2) चीनी कथाकार लु शुन की कहानी “ आ क्यू की सच्ची कहानी “ का नायक।
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अनिल अनलहातु
अनिल अनलहातु का जन्म बिहार के भोजपुर जिले के बडका लाहौर- फरना गाँव में दिसंबर 1972 ई. में हुआ।
अनलहातु जी साहित्य के साथ ही शास्त्रीय संगीत,चित्रकला,प्राचीन इतिहास,पुरातत्व,बौद्ध दर्शन, एंथ्रोपोलॉजी, समाजशास्त्र आदि विषयों का अध्ययन करते रहे हैं।
बाबरी मस्जिद तथा अन्य कविताएं' (भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित), 'समकाल की आवाज', ,कथादेश,वागर्थ,नया ज्ञानोदय,वर्तमान साहित्य,परिकथा,माटी,दैनिक भास्कर,हिंदुस्तान,पाखी, अनहलक,कविता-इंडिया, पोएट्री लंदन,कविता-नेस्ट कई अन्य प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में इनकी कविताएं और लेख प्रकाशित होते रहे हैं । अनिल जी को 'बाबरी मस्जिद तथा अन्य कविता संग्रह पर साहित्य शिल्पी पुरस्कार, प्रतिलिपि कविता सम्मान, मुक्तिबोध स्मृति कविता पुरस्कार,आई,आई, टी.कानपुर द्वारा हिंदी में वैज्ञानिक लेखन पुरस्कार,साहित्य गौरव पुरस्कार प्राप्त हैं। वर्तमान समय में वे अनलहातु स्टील ऑथोरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) में महाप्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं।
ईमेल.gmccso2019@gmail.com
बाबरी मस्जिद तथा अन्य कविताएं' (भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित), 'समकाल की आवाज', ,कथादेश,वागर्थ,नया ज्ञानोदय,वर्तमान साहित्य,परिकथा,माटी,दैनिक भास्कर,हिंदुस्तान,पाखी, अनहलक,कविता-इंडिया, पोएट्री लंदन,कविता-नेस्ट कई अन्य प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में इनकी कविताएं और लेख प्रकाशित होते रहे हैं । अनिल जी को 'बाबरी मस्जिद तथा अन्य कविता संग्रह पर साहित्य शिल्पी पुरस्कार, प्रतिलिपि कविता सम्मान, मुक्तिबोध स्मृति कविता पुरस्कार,आई,आई, टी.कानपुर द्वारा हिंदी में वैज्ञानिक लेखन पुरस्कार,साहित्य गौरव पुरस्कार प्राप्त हैं। वर्तमान समय में वे अनलहातु स्टील ऑथोरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) में महाप्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं।
ईमेल.gmccso2019@gmail.com
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