1. स्टेशन
स्टेशन पर,
मैं थोड़ा पहले आ गया हूँ
और ट्रेन अभी आने वाली है
ट्रेन के आने से पहले ही
लोग धीरे-धीरे इकठ्ठे हो रहे हैं
धीरे-धीरे इकट्ठे हो रहे ये लोग,
अचानक बहुत अधिक हो जाएँगे
कई बार लगता है
कि एक छोटी सी रेलगाड़ी में
कैसे आएंगे इतने सारे लोग?
लेकिन जब चलती है ट्रेन
तो सब इसी में समा जाते हैं
कुछ अपने घर को आते हैं
कुछ अपने घर से जाते हैं ।
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2.आज
आज दिन भर कुछ नहीं किया
न अख़बार पढ़ा
न कोई गीत सुना
न ही कोई कविता पढ़ी
न कोई फ़िल्म देखी
बस दो अपरिचितों से मिला
कुछ हुआ या न हुआ हो
लेकिन यह ज़रूर हुआ
कि इतनी बड़ी दुनिया में
मुझे न जानने वालों में
आज दो लोग और कम हुए ।
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3. जिस दिन कहीं मुझे जाना हो
जिस दिन कहीं मुझे जाना हो
और दिन तो आ जाती है
उस दिन नींद कहाँ आती है
जिस दिन कहीं मुझे जाना हो
और सुबह में जग जाना हो
लाख जतन विनती कर डालो
बत्ती आँख बंद कर डालो
कम खा लो या ज़्यादा खा लो
कविता पढ़ लो,लोरी गा लो
उस दिन नींद नहीं आती है
जिस दिन कहीं मुझे जाना हो
और सुबह में जग जाना हो
दिल-दिमाग़ में चलते रहते
हित्र-मित्र और रिश्ते-नाते
बेमतलब की आती बातें
पूरी-पूरी-पूरी रातें
उस दिन नींद निकल जाती है
चने चबाने भुट्टे खाने
जिस दिन कहीं मुझे जाना हो
और सुबह में जग जाना हो।
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4. तलाश
घर में ही कोई खोई हुई चीज़
लाख खोजने पर नहीं मिलती
हम जिसे लगातार खोजते रहते हैं
वह तब मिलती है
जब हम किसी और चीज़ को खोजने लगते हैं
रात में रात खोजता हूँ, नहीं मिलती
शांति में शांति तलाशता हूँ
नहीं पाता
भूख में रोटी ढूंढता हूँ
तो भूख और बढ़ जाती है
नींद में नींद खोजता हूँ
नींद नहीं मिलती
यहाँ तक थोड़ा मौका खोजिए
तो मौका भी नहीं मिलता
साफ़ पानी खोजो
तो साफ़ पानी नहीं मिलता
एक बहुत बड़े शहर में
एक ढंग का ठिकाना ढूँढना
बहुत कठिन काम है
जीवन में
जीवन भर, हम जो खोजते हैं
उसे कहाँ पाते हैं
बस चलते चले जाते हैं...
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संदीप तिवारी
संदीप तिवारी का जन्म उत्तर प्रदेश के अम्बेडकरनगर में हुआ। इनकी कविताएँ हिंदी की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। इन्हें 2020 का रविशंकर उपाध्याय युवा कविता पुरस्कार प्राप्त है। वर्तमान समय में संदीप जी राजेंद्र प्रसाद डिग्री कॉलेज बरेली में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के पद पर कार्यरत हैं।
ईमेल- sandeepmuir93@gmail.com
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