बुधवार, 20 अगस्त 2025

पराग पावन

 1.पंजे भर ज़मीन 


इस धरती पर बम फोड़ने की जगह है
बलात्कार करने की जगह है
दंगों के लिए जगह है
ईश्वर और अल्लाह के पसरने की भी जगह है
मगर तुमसे मुलाक़ात के लिए
पंजे भर ज़मीन नहीं है इस धरती के पास

जब भी मैं तुमसे मिलने आता हूँ
भईया की दहेजुआ बाइक लेकर
सभ्यताएँ उखाड़ ले जाती हैं उसका
स्पार्क प्लग

संस्कृतियाँ पंचर कर जाती हैं उसके टायर
धर्म फोड़ जाता है उसकी हेडलाइट
वेद की ऋचाएँ मुख़बिरी कर देती हैं
तुम्हारे गाँव में
और लाल मिरजई बाँधे रामायण तलब करता है
मुझे इतिहास की अदालत में

मैं चीख़ना चाहता हूँ कि
देवताओं को लाया जाए मेरे मुक़ाबिल
और पूछा जाए कि कहाँ गई वह ज़मीन
जिस पर दो जोड़ी पैर टिका सकते थे
अपना क़स्बाई प्यार

मैं चीख़ना चाहता हूँ कि
धर्मग्रंथों को लाया जाए मेरे मुक़ाबिल
और पूछा जाए कि कहाँ गए वे पन्ने
जिन पर दर्ज किया जा सकता था प्रेम का ककहरा

मैं चीख़ना चाहता हूँ
कि लथेड़ते हुए खींचकर लाया जाए
पीर और पुरोहित को और पूछा जाए
कि क्या हुआ उन सूक्तियों का
जो दो दिलों के महकते भाप से उपजी थीं

मेरे बरअक्स तलब किया जाना चाहिए इन सभी को
और तजवीज़ से पहले बहसें देवताओं पर होनी चाहिए
पीर और पुरोहित पर होनी चाहिए
आप देखेंगें कि देवता बहस पसंद नहीं करते

मैंने तो फ़ोन पर कह दिया है अपनी प्रेमिका से
कि तुम चाँद पर सूत कातती बुढ़िया बन जाओ
और मैं अपनी लोक-कथाओं का कोई बूढ़ा बन जाता हूँ

सदियों पार जब बम और बलात्कार से
बच जाएगी पीढ़ा भर मुक़द्दस ज़मीन
तब तुम उतर आना चाँद से
मैं निकल आऊँगा कथाओं से

तब झूमकर भेंटना मुझे इस तरह कि
‘मा निषाद’ की करकन लिए हुए
सिरज उठे कोई वाल्मीकि का वंशज

अभी तो इस धरती पर बम फोड़ने की जगह है
दंगों के लिए जगह है
ईश्वर के पसरने की भी जगह है
पर तुमसे मुलाक़ात के लिए
पंजे भर ज़मीन नहीं है

इस धरती के पास।
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2. जंगल में मोर नाचा किसने देखा


किसी ने नहीं देखा जंगल में मोर को नाचते हुए
तो उसका नृत्य अप्रामाणिक नहीं हो जाता

उसकी कला मात्र इसलिए संदिग्ध नहीं हो जाती
कि उसने प्रदर्शन नहीं किया
आपकी अनुमति और मशविरे की प्रतीक्षा किए बग़ैर
वह नाच उठा

पुरस्कृत होने की भ्रष्टाकांक्षा
आलोचित होने के भय
या उपेक्षित होने के दुख से बहुत दूर
मोर सिर्फ़ इसलिए नाचा
कि उसकी आत्मा का आदिम उत्सव
उसके पैरों को बाँध नहीं पा रहा  था

एक भीतरी हलचल ने स्थिर न रहने दिया
नाचना और इसलिए कला भी
सबसे पहले इस दुनिया की अपूर्णता के विरुद्ध
एक ऐलान है

तो कहिए कि मोर अपनी अपूर्ण दुनिया के लिए नाचा
आपके विशिष्टताबोध से पैदा
वैधता प्रदान करने की ऐतिहासिक आदतों
और स्वतःधारित अधिकारों के ख़िलाफ़
मोर शायद जंगल के लिए नाचा

युग बीत जाते हैं
आप न मुहावरे बदलते हैं न उनका आशय
तो एक दिन जंगल, मोर और नृत्य
एक व्यंग्यात्मक मुस्कान में कहते हुए पाए जाते हैं
कि आपका जानना बाक़ी है

जंगल के बारे में
मोर के बारे में
नृत्य के बारे में।
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3.असली हत्यारे


असली हत्यारे बंदूक़ की असमर्थताओं को जानते हैं
वे पहचानते हैं तलवार की सीमाओं को

असली हत्यारे शब्दों से क़त्ल का काम लेते हैं
असली हत्यारे परिणाम में नहीं प्रक्रिया में शामिल हैं

वे मरघट के मुहाने पर संभोग के गीत बेच रहे हैं
भीषण बारिश के मौसम में
छतरियों को बदनाम कर रहे हैं

असली हत्यारे महफ़िल के केंद्र में बैठे हुए
महफ़िल के केंद्र को गाली दे रहे हैं 
कि महफ़िल का केंद्र सलामत रहे 
उनकी परंपरा के लिए

चाक़ू की निंदा करने का काम
और कच्चे लोहे की दुकान खोलने का काम
वे समान भोली मुस्कान के साथ करते चले जा रहे हैं

असली हत्यारे आपकी बग़ल में खड़े होकर चाय पी रहे हैं
और चाय के ख़ून से महँगा होने की शिकायत कर रहे हैं

असली हत्यारों की उम्र हज़ार साल है
वे धर्मग्रंथों की ओट में बैठे हैं
वे आत्मा नहीं आत्मा की परिभाषा हैं

हवा उन्हें सुखा नहीं सकती
आग जला नहीं सकती
पानी भिगो नहीं सकता

असली हत्यारे पुस्तकालय जाते हैं
संसद जाते हैं
दोस्त की दावत और टेलीविज़न से लौटते हैं
और सो जाते हैं

असली हत्यारे सोने से पहले याद दिलाना नहीं भूलते
कि सब कुछ अच्छा चल रहा है
असली हत्यारे बाँस बोते हैं
उस बाँस से सबसे उम्दा क़िस्म की लाठी
और सबसे निकृष्ट क़िस्म की बाँसुरी बनाते हैं

असली हत्यारों की शिनाख़्त करनी हो
तो उपसंहार तक कभी मत जाना
असली हत्यारे भूमिका में अपना काम कर चुके होते हैं।
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4. तारों भरे आंचल को परसों तक नहीं जलाना चाहिए


हताशाओं और नाउम्मीदी का 
महासागर हमेशा डरावना होता है
फिर भी हौसले का लंगर 
सफ़र पर निकल ही जाता है

पराजय की शाम तानाशाहों की हँसी जितनी 
घृणित और क़ातिल होती है
पर जज़्बातों के पंछी अपने 
मंगलगीत कभी नहीं भूलते

यह भी समझ ही लेना चाहिए कि
जब तक हमारा घर शून्य नहीं है
या जब तक हम निर्वात के नागरिक नहीं हैं
तब तक 'व्यक्तिगत' हिंदी शब्दकोश का व्यर्थतम शब्द है

कहा नहीं जा सकता कि प्रेमिका की बेवफ़ाई का दुःख
प्रधानमंत्री के नैतिक पतन का दुःख
और पट्टीदार से पुश्तैनी पेड़ के विवाद का दुःख
तत्वतः किस तरह अलग है

दुःख की यही आदत है
वह आने के मामूली अवसर 
को भी गँवाना नहीं जानता
दुःख के आने के हज़ार तर्क हैं
और जीवन उन तर्कों में सर्वश्रेष्ठ है

पर जैसा कि मैंने ऊपर कहा
मुश्किलों के भेड़ियों की गुर्राहट
इंसान के पसीने तक पहुँचने से पहले ही
थक कर सो जाती है

जिस दर पर दुनिया वाले रास्तों को दफ़ना देते हैं
वहीं एक रास्ता पैदा होता है और 
इंसान की अँगुली पकड़कर 
श्मशान से बाहर ले जाता है

कहने वाले कहते हैं 
चाँद पर महज़ मिट्टी है 
और सभी तारों पर कमोबेश ऐसा ही है

पर कुछ लोग अब भी 
तारों से एक आँचल बना रहे हैं
वे लोग उस तारों भरे 
आँचल को परसों तक नहीं जलाएँगे।
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5. आत्महत्याओं का स्थगन 


अपने वक़्त की असहनीय कारगुज़ारियों पर
शिकायतों का पत्थर फेंककर
मृत्यु के निमंत्रण को जायज़ नहीं ठहराया जा सकता

हम दुनिया को
इतने ख़तरनाक हाथों में नहीं छोड़ सकते
हमें अपनी-अपनी आत्महत्याएँ स्थगित कर देनी चाहिए।
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पराग पावन 
















पराग पावन का जन्म 1993 में उत्तर प्रदेश, जौनपुर में हुआ। वर्तमान समय में पराग पावन जवाहरलाल नेहरू विश्व विद्यालय से पढ़ाई कर रहे हैं। उनकी कविताएँ प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं और डिजिटल मंचों पर प्रकाशित होती रही हैं।
ईमेल:paragpawan577@gmail.co


 

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