बुधवार, 9 जुलाई 2025

ज्योति रीता


1. आलोक धन्वा के लिए


कवि प्रेम करना जानता है
कवि दुलारना जानता है
कवि की भाषा तरल होती है
कवि अंदर तक भावनाओं से भीगा होता है
कवि को नफरत की भाषा नहीं आती
नहीं आती उसे राजनीति की भाषा

वह तोलता है आँखों का पानी
हथेली का स्पर्श
और छूट गया संवाद

कवि चाहता है
कि उसे प्रेम किया जाए
उसके अंतिम समय तक।
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2. हँसती हुई स्त्रियाँ 

हँसती हुई स्त्रियाँ कितनी खूबसूरत लगती हैं
परंतु स्त्री को हँसने से हमेशा रोका गया
एक दिन स्त्री हँसती हुई रसोई से बाहर आ गई

बैठकखाने के बीचो-बीच हाथ मार कर हँसते हुए बोली- 
तुम्हारी सत्ता हमारे हँसने से भी हिलती है क्या
वह हँसी पुरुषसत्ता पर ज़ोरदार तमाचा था

वह पुरुष अलग थे
जिन्होंने हँसती स्त्री के साथ हँसने का वक्त निकाला
उनकी हँसी देखकर निहाल हुए
बांहों में भर कर उन्होंने कहा- मेरी जान! ऐसे ही हँसती रहा करो
तुम हँसते हुए बेहद ख़ूबसूरत लगती हो।

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3. युद्ध और शांति


कितना आसान है
युद्ध छेड़ देना

कितना मुश्किल है
छिड़े युद्ध को रोककर 

मनुष्यता बचा लेना
हर युद्ध के बाद 
अंतत: मनुष्यता हारती है।
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4. यहाँ मनुष्यता गौण है


र एक के हाथ में धर्म का झंडा है
हर एक अपने झंडे को ऊँचा रखना चाहता है

हर एक के हाथ में पत्थर है
एक धर्म दूसरे धर्म के सिर पर पत्थर मारता है

कोई चीखता है जय श्री राम
कोई चीखता है अल्लाह हू अकबर

मनुष्यता गौण है
तथाकथित भगवान-खुदा घायल है।
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ज्योति रीता 




 
 

 




ज्योति रीता का जन्म 24 जनवरी को बिहार में हुआ। ज्योति जी हिंदी साहित्य में परास्नातक और बी.एड, एम.एड हैं। 'मैं थीगल में लिपटी थेर हूँ' (2022), 'अतिरिक्त दरवाज़ा' (2025) इनके प्रकाशित काव्य संग्रह हैं। 
ईमेल- jyotimam2012@gmail.com

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