1. गँवई किरदार
मैंने नहीं किया भ्रमित
अपनी गँवई कविता के किरदार को
अपनी गँवई कविता के किरदार को
मैं उसे ऐसा ही दिखाता हूँ
जैसा वह सचमुच में दिखता है
जैसा वह सचमुच में दिखता है
उसने जब-जब भी की कोशिश
रेल की पटरियों पर चढ़ने की
रेल की पटरियों पर चढ़ने की
मैंने कच्ची सड़क पर खदेड़कर
उसे उसकी औक़ात बताई
उसे उसकी औक़ात बताई
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2. इबादत
मौसम करवट बदल रहा है
माँ चूल्हे को ढकने की तैयारी में है
पिता जी रवाना हो गए हैं
खेत को अब बारिश हो
तो दोनों की इबादत पूरी हो
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3. भूमिकाएँ
भूमिकाएँ तय की गईं सबके लिए
पुरुषों के लिए भूमिकाओं के चयन के लिए
चुने गए बेटा, बाप, पति, भाई जैसे शब्द
रोते समय उनके चेहरे की मर्दानगी को
ढकने की कोशिश की गई
और कहा गया कि क्या रोते हो औरतों की तरह
उनके हिस्से में जो स्त्रियाँ आईं
उनके लिए वे प्रेमी रहे
और बहुतायत में पति
टिफ़िन लेकर दफ़्तर जाते समय वे होते हैं कर्मचारी
और शाम को लौटते हैं वे पिताओं की
भूमिका में
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4. कहाँ
आदमी को कहाँ होना चाहिए
ये उसे ख़ुद तय करना होगा
अपने आपसे हर जिरह के बाद
अगर वह अपने आप में नहीं है
तब उसे कहीं नहीं होना चाहिए
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5. अभिनेता
अधिकार हनन को ही
अधिकार समझता है वह अपना
पक्षपात करना हमेशा से उसकी
नियति में रहा है
वह किसी को भी उठवा सकता है दिनदहाड़े
मेरे शहर के लोग
उसे अघोषित बलात्कारी मानते हैं
वह एक अभिनेता है
जो फ़िल्मों में
राजनेता का किरदार निभाता हैं
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6. आदमी बनने के क्रम में
एक आदमी के बनने में
जो समय लगता है
वह एक प्रगतिशील प्रक्रिया का
हिस्सा होता है
जो नहीं बिठा सके सामंजस्य
समय के साथ
वे पिछड़ गए
और जो रहे हैं संघर्षरत हमेशा
उनको समय ने भी समय दिया है
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अंकुश कुमार
अंकुश कुमार का जन्म 8 जुलाई 1994 में उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में हुआ। अंकुश जी 'हिंदीनामा' के संस्थापक-संपादक हैं। पेशे से इंजीनियर होने के बाद भी साहित्य में इनकी गहरी रुचि है। 'आदमी बनने के क्रम में' इनकी कविताओं की पहली पुस्तक है जो 2022 में प्रकाशित हुई।
ईमेल- kumarankush664@gamil.com
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