1.
ख़ुद ही प्यासे हैं समन्दर तो फ़क़त नाम के हैं
भूल जाओ कि बड़े लोग किसी काम के हैं
भूल जाओ कि बड़े लोग किसी काम के हैं
दस्तकें ख़ास उसी वक़्त में देता है कोई
चार-छह पल जो मेरी उम्र में आराम के हैं
चार-छह पल जो मेरी उम्र में आराम के हैं
कोई क्या लाग लगाए कि बिछड़ना है अभी
हमसफ़र आप के हम एक ही दो गाम के हैं
हमसफ़र आप के हम एक ही दो गाम के हैं
आसमानों में बुलन्दी का सफ़र तय कर के
लौट आते हैं परिन्दे जो मेरे बाम के हैं
लौट आते हैं परिन्दे जो मेरे बाम के हैं
शाइरी, चाय, तेरी याद चमकते जुगनू
बस यही चार तलब रोज़ मेरी शाम के हैं
बस यही चार तलब रोज़ मेरी शाम के हैं
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2.
सफ़र की रात है दरिया को पार करना है
सफ़ीना डूब गया है मुझे उबरना है
तुम्हारे बाद अभी इन शिकस्ता क़दमों से
पहाड़ चढ़ने हैं दरियाओं में उतरना है
पहाड़ चढ़ने हैं दरियाओं में उतरना है
वो संग-दिल जो अभी रो पड़ा तो इल्म हुआ
कि उस पहाड़ के सीने में एक झरना है
कि उस पहाड़ के सीने में एक झरना है
मैं ख़ुश-लिबास समझ कर पहन रही हूँ क़फ़न
मैं ज़िन्दगी हूँ मेरा काम रंग भरना है
मैं ज़िन्दगी हूँ मेरा काम रंग भरना है
मिटाना ख़ुद है मुझे अपने अंदरूं का शोर
मगर ये काम बहुत ख़ामुशी से करना है
मगर ये काम बहुत ख़ामुशी से करना है
मिटा रही हूँ चटख रंग सब शबीह के मैं
कि कैनवस को बहुत सादगी से भरना है
कि कैनवस को बहुत सादगी से भरना है
किसी की मौत पे अक्सर ये सोचती हूँ मैं
मुझे भी कल को इसी राह से गुज़रना है
मुझे भी कल को इसी राह से गुज़रना है
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3.
पर्वतों के बीच वह जो इक नदी थी
अक्स अपना मैं उसी में देखती थी
अक्स अपना मैं उसी में देखती थी
रंग मुझ पर एक भी चढ़ता नहीं था
सादगी भी क्या बला की सादगी थी
सादगी भी क्या बला की सादगी थी
आह वो मुझको किसी में देखता था
आह मैं उसको किसी में देखती थी
आह मैं उसको किसी में देखती थी
सिर्फ़ माज़ी कह के फ़ुर्सत हो लिए हम
क्या बताते क्या हमारी ज़िन्दगी थी
क्या बताते क्या हमारी ज़िन्दगी थी
तुम फ़क़त इस जिस्म तक ही रह गए ना
मैं तुम्हें ख़ुद से मिलाना चाहती थी
मैं तुम्हें ख़ुद से मिलाना चाहती थी
चाँद-सूरज तक मेरे आँगन में उतरे
ज़िन्दगी बस एक तेरी ही कमी थी
ज़िन्दगी बस एक तेरी ही कमी थी
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4.
आप होते हैं कहाँ गाम कहाँ होता है
इश्क़ में यूँ भी सफ़र आम कहाँ होता है
इश्क़ में यूँ भी सफ़र आम कहाँ होता है
इश्क़ में हैं जो उन्हें काम में राहत दी जाए
इश्क़ में होते हुए काम कहाँ होता है
इश्क़ में होते हुए काम कहाँ होता है
आप हैं शाह जिसे चाहें खरीदें लेकिन
हम फ़क़ीरों का कोई दाम कहाँ होता है
हम फ़क़ीरों का कोई दाम कहाँ होता है
यूँ करो एक ही झटके में चढ़ा दो सूली
रोज़ की मौत में आराम कहाँ होता है
रोज़ की मौत में आराम कहाँ होता है
ज़िन्दगी तेरी पढाई का अजब है दस्तूर
बस रिजल्ट आता है एग्जाम कहाँ होता है
बस रिजल्ट आता है एग्जाम कहाँ होता है
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5.
हर क़दम राह बनाने में कटी उम्र मेरी
घर से दालान तक आने में कटी उम्र मेरी
आईना देख सकूँ इतनी कहां फ़ुरसत है
ज़िन्दगी तुझ को सजाने में कटी उम्र मेरी
ज़िन्दगी तुझ को सजाने में कटी उम्र मेरी
शूल को शूल समझने का सलीक़ा सीखा
फूल को फूल बताने में कटी उम्र मेरी
फूल को फूल बताने में कटी उम्र मेरी
दिल मेरा रूठ गया मेरे तग़ाफ़ुल से ही
जाने किस किस को मनाने में कटी उम्र मेरी
जाने किस किस को मनाने में कटी उम्र मेरी
देखती रहती हूँ मैं पार उतरते हुए लोग
पार गिरदाब लगाने में कटी उम्र मेरी
पार गिरदाब लगाने में कटी उम्र मेरी
घर से निकली तो फ़क़त दो ही क़दम थी दुनिया
लौट कर फिर से घर आने में कटी उम्र मेरी
लौट कर फिर से घर आने में कटी उम्र मेरी
साँस भर जितनी हवा की ही ज़रूरत थी मुझे
और बस इतनी कमाने में कटी उम्र मेरी
और बस इतनी कमाने में कटी उम्र मेरी
रानियाँ तक तो जहाँ क़ैद में रहती हैं हुज़ूर
एक ऐसे ही घराने में कटी उम्र मेरी
एक ऐसे ही घराने में कटी उम्र मेरी
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6.
हुनर देखे सभी चारागरी के
न आया काम कोई ज़िंदगी के
न आया काम कोई ज़िंदगी के
ज़रा सी आँख नम होती है मेरी
किनारे डूब जाते हैं नदी के
किनारे डूब जाते हैं नदी के
सराबों में नज़र आता था दरिया
नज़र में क़ैद थे हम तिश्नगी के
नज़र में क़ैद थे हम तिश्नगी के
न रस्ते का न मंज़िल का ठिकाना
ग़ज़ब दिन थे मेरी आवारगी के
ग़ज़ब दिन थे मेरी आवारगी के
बक़ाया हो गया है उम्र भर का
बड़े महंगे हैं ज़ेवर सादगी के
बड़े महंगे हैं ज़ेवर सादगी के
मैं जिस मंज़िल की जानिब बढ़ रही हूँ
मुसाफ़िर मिल रहे हैं वापसी के
मुसाफ़िर मिल रहे हैं वापसी के
मैं होश अपना किसी को दे चुकी थी
मेरे किस्से बहुत हैं बेख़ुदी के
मेरे किस्से बहुत हैं बेख़ुदी के
दुखों की शायरी अच्छी है मेरी
नये पहलू निकाले हैं ख़ुशी के
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डॉ.संजू शब्दिता
उत्तर प्रदेश के अमेठी में जन्मी डॉ.संजू शब्दिता की स्कूली शिक्षा उत्तर प्रदेश के विभिन्न कस्बों और नगरों में हुई।विश्वविद्यालय से इन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की।हिंदी विषय से नेट,जे.आर.एफ. एवम् पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त है।
संजू शब्दिता ने साहित्यिक परिदृश्य में विशेष रूप से ग़ज़ल के क्षेत्र में बहुत कम समय में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है।
संजू शब्दिता ने साहित्यिक परिदृश्य में विशेष रूप से ग़ज़ल के क्षेत्र में बहुत कम समय में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है।
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