1. बरसात हो रही है
बरसात हो रही है
तुम भीग रही हो
लो बिखर गए न पन्ने
तुम भीग रही हो
लो बिखर गए न पन्ने
एक तस्वीर जो अटक गई है छज्जे पर
धीरे से उतारना
उसके कोने में बची है तुम्हारी स्मित हँसी
धीरे से उतारना
उसके कोने में बची है तुम्हारी स्मित हँसी
वो पंक्ति भी जिसमें तुम प्रेम में ही शर्त नहीं रखतीं
जीवन के फलसफे भी ख़ुद तय करती हो
तुम ख़ुद को पसंद करती हो
तुम ख़ुद को पसंद करती हो
तुम्हारा स्वाद बचा रह गया है
उसे सहेज लो
सुनो इस बार भविष्य की ओर पीठ न करना
तह कर लो सब सामान
अगली बरसात जल्द ही होगी ।
उसे सहेज लो
सुनो इस बार भविष्य की ओर पीठ न करना
तह कर लो सब सामान
अगली बरसात जल्द ही होगी ।
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2. मुखौटा
उसके पास एक मुखौटा है
जो बाहर निकलते ही लगा लेती है
दिन भर मुस्कुराती है
घर आते ही उतार फेंकती है मुखौटा
और चिल्ला पड़ती है
इन दिनों घर के सदस्य
और चिल्ला पड़ती है
इन दिनों घर के सदस्य
दूर जाने लगे हैं उससे
उसे एक और मुखौटा लगाना होगा
घर के लिए
उसे एक और मुखौटा लगाना होगा
घर के लिए
जो स्त्री घर और बाहर
दोनों जगह मुखौटा लगाती है
वो अपना मुखौटा
कहांँ उतारती होगी?
दोनों जगह मुखौटा लगाती है
वो अपना मुखौटा
कहांँ उतारती होगी?
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3. अंधेरा कितना कुछ कहता है
अन्धेरे की पदचाप
सुनी है कभी
सुनी है कभी
महीन सी ध्वनि होती है
जिसमें मिलन का उत्साह
बिछोह का क्रन्दन
एक लम्बी चुप्पी और गहरा रास्ता
जो दिखाई नहीं सुनाई देता है
अन्धेरा कितना कुछ कहता है
पर क्या सब
दर्ज़ हो पाता है !
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4. माँ सुन आज एक कहानी
एक वह समय था
सपने थे
जीवन था
सपने थे
जीवन था
खरगोश और कछुए की दौड़ थी
छज्जा था
रंग-बिरंगे पक्षी थे
छज्जा था
रंग-बिरंगे पक्षी थे
पानी में कागज की नाव तैरती थी
हम खेलते थे और थककर सो जाते थे
तब थक जाना और सुकून से सोना होता था ना माँ!
हम खेलते थे और थककर सो जाते थे
तब थक जाना और सुकून से सोना होता था ना माँ!
खिड़की है
आसमान है
किताबें हैं
बेचैनी है
घर नहीं है
आसमान है
किताबें हैं
बेचैनी है
घर नहीं है
पैदा होते ही कुछ खो गया था
आज तक नहीं मिला
मिलता ही नहीं
छूट गया है सब
आज तक नहीं मिला
मिलता ही नहीं
छूट गया है सब
मेरे अपने हिस्से एक अपना कमरा भी नहीं माँ
घर से जाते हुए मुड़कर नहीं देखती बेटियाँ
यह भी तो तय है ना माँ!
घर से जाते हुए मुड़कर नहीं देखती बेटियाँ
यह भी तो तय है ना माँ!
माँ! मेरे सामने ताला पड़ा है
जंग लग चुका है
उसे कोई खोलने नहीं आता
मेरे हाथ सुन्न पड़ गए हैं
मैं रोज उसे देखती हूँ और कुछ नहीं करती माँ!
जिन लड़कियों के कमरे में
सितारे तितलियाँ जड़े थे
वह कमरे बीते दिनों में
सितारे तितलियाँ जड़े थे
वह कमरे बीते दिनों में
बरसाती कीड़ों से भरे पाए गए
सड़ांध भर गई है
चिड़ियों के पंख कुतर दिए गए हैं।
सड़ांध भर गई है
चिड़ियों के पंख कुतर दिए गए हैं।
सब मिलकर उनकी प्रजाति ढूंढ रहे हैं
किसी में तड़प उठी
किसी में नसीहत
जो नहीं बदला
वह था माँ तुम्हारा चुप रहना और लड़कियों का डर जाना
अंधेरा होते ही एक दीवार की तरफ लौट आना।
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5. चिड़िया
चिड़िया के चंचु से
छूट जाता है तिनका
एक गीत गाती है
उड़ती फिरती है
शाम होते पक्षी जब घर को लौटते हैं
देखती है
और उम्मीद रखती है
एक दिन उठा लेगी तिनका
बना लेगी घोंसला
घर-संसार से अधिक
वो गीत के बारे में सोचती है
बनाती है जीवन-प्रेम का संगीत
चिड़ियों के बीच
वो चिड़ियों जैसी
नहीं रह पाती है ।
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अर्चना लार्क
अर्चना लार्क का जन्म 7 जुलाई को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले में हुआ। शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय और बी.एच.यू से पूर्ण हुई। वर्तमान समय में अर्चना लार्क राजधानी कॉलेज में हिंदी अध्यापन कर रही हैं।
ईमेल: larkarchana1@gmail.com
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