बुधवार, 28 मई 2025

हिमांशु विश्वकर्मा

 1. पहाड़ और काफल


मेरी तरह तुम्हारी भी
यादें
पहाड़ से
जुड़ी होंगी

और जब कभी भी
प्रेम में
पहाड़ को
याद करोगी तो
काफल के बिना यह
अधूरा होगा।

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2. नैनीताल पर



यहाँ कभी नहीं आई गर्मियाँ
न ही पिघला पाया सूरज
शहर की सर्द हवाओं को
मई का यह महीना

चिनार के पत्तों
पर होकर सवार
ख़ूब उड़ता है
सैलानियों के दिलों में।
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3. भ्यास



पहाड़ को छोड़कर शहर में बसे ठेठ पहाड़ियों के लिए
पहाड़ के सयाणों ख़ुश रहो,
तुम्हारी ज़मीनें ख़रीदी जा रही हैं
अब अच्छे दामों में

लेकिन
शर्त लगा लो
उस पैसे से तुम
भाबर में ख़रीदे प्लॉट की नींव को
दौड़ती सड़क के बराबर भी नहीं कर पाओगे

और याद रखना
एक दिन तुम्हारी ही नस्लें
तुम्हारे नाती-नातिनें
पोते-पोतियाँ
तुमको देंगे गालियाँ
थूकेंगे तुम्हारी करनी पर

कोसेंगे तुमको कि
उस टैम तुमने
ज़मीन और जंगल और पानी नहीं बेचा होता तो
गति ऐसी नहीं होती
हम ठैरे मिट्टी से अन्न उपजाने वाले
पानी से घराटों को गति देने वाले
पेड़-पहाड़ों और जंगलों में घूमते जंगल चलाने वाले

हाय!
तुमने झूठी ठसक के चक्कर में
पीढ़ियाँ ख़राब कर डालीं
आधा रह गया
तुम्हारा संसार
गाँव में सरकारी सैप हो गए
और शहर में
भ्यास पहाड़ी।
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4. नदियाँ और बेटियाँ 



जैसे सुदूर पहाड़ों से आती हैं नदियाँ
ऊँचे पर्वतों
ताज़ा हवा और
हरे पत्तों पर बिसरी ओस की बूँदों को
उलाँघकर मैदानों तक

ठीक वैसे ही हिमाल की बेटियाँ
उलाँघकर आती हैं मैदानों पर
असंख्य देहलियाँ
अनगिनत भेड़ें
अलौकिक बुरूंश और क्वेराल के पुष्प
मैदानों में आकर
नदियाँ सींचती हैं

तीव्र-निरंतर और नीरस
पिंजरों में बंद
शहरों के फड़फड़ाते ख़्वाबों को
फिर भी मोड़ दी जाती उसकी दिशा
क़ैद कर लिया जाता है उसका संवेग
बदल दिया जाता उसका रंग
और उसकी देह में ठूँसी जाती है
तमाम सभ्यताओं की गंध

मैदानों पर आकर
मेहनत और लगन से
बेटियाँ खींचती हैं
अपने सपनों की लकीरें
ईजा-बाज्यू और दाज्यू भेजते हैं दुआएँ

भेजते हैं—
काफल, ककड़ी, बिरुड़े और घी
बेटियाँ जब बढ़ने लगती हैं
शहर में
अपने भविष्य के लिए
तभी
खींच लिए जाते हैं
उसके हाथ

हाशिये पर रख दिए जाते हैं उसके ख़्वाब
पूछे जाते हैं अनगिनत सवाल
निर्दोष वह जब लड़ती है
हक़ की लड़ाई
बोला जाता है उसे गँवार

पढ़ाई जाती हैं—
संस्कार और मर्यादाओं की पोथियाँ
बेटियों को सताया जाता है
दी जाती हैं
गालियाँ

मैदानों पर आने के लिए
उनके क़दमों को बाँध दिया जाता है
मोड़ दिए जाते हैं उनके रास्ते
छीन लिया जाता है उनसे
उसके जीवन का
हौसियापन
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हिमांशु विश्वकर्मा 









युवा रचनाकार हिमांशु विश्वकर्मा वर्तमान समय में कुमाऊँ विश्वविद्यालय के 'हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषा विभाग' में शोधार्थी हैं। 'अनुनाद' एवं दिल्ली के हिंदू कॉलेज की पत्रिका 'हस्ताक्षर' में इनकी कविताएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। 
ईमेल: iamhimanshuvishwakarma@gmail.
Com





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