गुरुवार, 9 मई 2024

अनामिका अनु

क्षमा 

तुमने पाप मिट्टी की भाषा में किए

मैंने बीज के कणों में माफ़ी दी


तुमने पानी से पाप किए

मैंने मीन-सी माफ़ी दी


तुम्हारे पाप आकाश हो गए

मेरी माफी पंक्षी


तुम्हारे नश्वर पापों को

मैंने जीवन से भरी माफ़ी बख्शी


तुमने गलतियां गिनतियों में की 

मैंने बेहिसाब माफ़ी दी


तुमने टहनी भर पाप किए

मैंने पत्तियों में माफ़ी दी


तुमने झरनों में पाप किए

मैंने बूंदों से दी माफ़ी


तुमने पाप से तौबा किया

मैंने स्वयं को तुम्हें दे दिया 


तुम सांझ से पाप करोगे

मैं डूबकर क्षमा दूँगी


तुम धूप से पाप करोगे

मैं माफ़ी में छाँव दूँगी


नीरव, निशब्द पापों

को झींगुर के तान वाली माफ़ी


वाचाल पापों को 

मौन वाली माफ़ी


वामन वाले पाप को

बलि वाली माफ़ी


तुम्हारे पाप से बड़ी होगी मेरी क्षमा

मेरी क्षमा से बहुत बड़े होंगे

वे दुःख.....

जो तुम्हारे पाप पैदा करेंगे|

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न्यूटन का तीसरा नियम

तुम मेरे लिए 

शरीर मात्र थे

क्योंकि मुझे भी तुमने यही महसूस कराया|


मैं तुम्हारे लिए 

आसक्ति थी,

तो तुम मेरे लिए 

प्रार्थना कैसे हो सकते हो?


मैं तुम्हें 

आत्मा नहीं मानती,

क्योंकि तुमने मुझे

अंतःकरण नहीं माना|


तुम आस्तिक

धरम-करम मानने वाले ,


मैं नास्तिक!

न भौतिकवादी, न भौतिकीविद 


पर फिर भी मानती हूँ

न्यूटन का तीसरा नियम -

क्रिया के बराबर प्रतिक्रिया होती है,

और हम विपरीत दिशा में चलने लगे......|

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शिक्षा

जिस पानी को दरिया में होना था

वह कूप, नल, पानी शुद्धिकरण 

यंत्र से कैसे बोतलों में बंद बिकने लगी?

प्यास ज्ञान की इन बोतलों 

से नहीं मिटने वाली,

दरिया को बचाना होगा|

संकुचन-

दिमागी बौनों की भीड़ गढ़ गया


वे जो दौड़ रहे हैं पत्थर के बुत की और

इंसानों को रौंदकर 

बताते हैं,

दरिया का विकल्प बोतलें नहीं होतीं|

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मैं मारी जाऊँगी

मैं उस भीड़ के द्वारा मारी जाऊँगी 

जिससे भिन्न सोचती हूँ|


भीड़-सा नहीं सोचना 

भीड़ के विरुद्ध होना नहीं होता है|

ज्यादातर भीड़ के भले के लिए होता है

ताकि भीड़ को भेड़ की तरह

नहीं हाँका जा सके|


यह दर्ज फिर भी हो 

कि

भिन्न को प्रायः भीड़ ही मारती है|

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अफ़वाह

अफ़वाह है कि एक बकरी है

जो चीर देती है सींग से अपने, छाती शेर की| 


ख़रगोश बिल में दुबका है,

बाघ माँद में डर से,

लोमड़ी और गीदड़ नहीं बोल रहे हैं कुछ भी|


पर एक जोंक है

बिना दांत, हड्डी के रीढ़ वाली

वह चूस आयी है सारा खून बकरी का|


कराहती बकरी कह रही है-

"अफ़वाह की उम्र होती है,

सच्चाई ने मौत नहीं देखी है

 क्योंकि यह न घटती है, न बढ़ती है|"

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अनामिका अनु

जनवरी 1982 को जन्मी केरल निवासी अनामिका अनु मूलतः बिहार के मुजफ्फरपुर से आती हैं| वनस्पति विज्ञान में एम.एससी. और पीएच,डी. अनामिका अनु का 'इंजीकरी' नामक एक काव्य-संग्रह तथा प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ, कहानियाँ एवं अनुवाद प्रकाशित हुए हैं| 'यारेख' पुस्तक का संपादन भी किया है|
इन्हें वर्ष 2020 में भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार, 2021 में राजस्थान पत्रिका वार्षिक सृजनात्मक पुरस्कार(सर्वश्रेष्ठ कवि), 2022 में रज़ा फेलोशिप, 2023 में महेश अंजुम युवा कविता सम्मान से सम्मानित किया गया है|



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