क्षमा
तुमने पाप मिट्टी की भाषा में किए
मैंने बीज के कणों में माफ़ी दी
तुमने पानी से पाप किए
मैंने मीन-सी माफ़ी दी
तुम्हारे पाप आकाश हो गए
मेरी माफी पंक्षी
तुम्हारे नश्वर पापों को
मैंने जीवन से भरी माफ़ी बख्शी
तुमने गलतियां गिनतियों में की
मैंने बेहिसाब माफ़ी दी
तुमने टहनी भर पाप किए
मैंने पत्तियों में माफ़ी दी
तुमने झरनों में पाप किए
मैंने बूंदों से दी माफ़ी
तुमने पाप से तौबा किया
मैंने स्वयं को तुम्हें दे दिया
तुम सांझ से पाप करोगे
मैं डूबकर क्षमा दूँगी
तुम धूप से पाप करोगे
मैं माफ़ी में छाँव दूँगी
नीरव, निशब्द पापों
को झींगुर के तान वाली माफ़ी
वाचाल पापों को
मौन वाली माफ़ी
वामन वाले पाप को
बलि वाली माफ़ी
तुम्हारे पाप से बड़ी होगी मेरी क्षमा
मेरी क्षमा से बहुत बड़े होंगे
वे दुःख.....
जो तुम्हारे पाप पैदा करेंगे|
__________________________
न्यूटन का तीसरा नियम
तुम मेरे लिए
शरीर मात्र थे
क्योंकि मुझे भी तुमने यही महसूस कराया|
मैं तुम्हारे लिए
आसक्ति थी,
तो तुम मेरे लिए
प्रार्थना कैसे हो सकते हो?
मैं तुम्हें
आत्मा नहीं मानती,
क्योंकि तुमने मुझे
अंतःकरण नहीं माना|
तुम आस्तिक
धरम-करम मानने वाले ,
मैं नास्तिक!
न भौतिकवादी, न भौतिकीविद
पर फिर भी मानती हूँ
न्यूटन का तीसरा नियम -
क्रिया के बराबर प्रतिक्रिया होती है,
और हम विपरीत दिशा में चलने लगे......|
__________________________________
शिक्षा
जिस पानी को दरिया में होना था
वह कूप, नल, पानी शुद्धिकरण
यंत्र से कैसे बोतलों में बंद बिकने लगी?
प्यास ज्ञान की इन बोतलों
से नहीं मिटने वाली,
दरिया को बचाना होगा|
संकुचन-
दिमागी बौनों की भीड़ गढ़ गया
वे जो दौड़ रहे हैं पत्थर के बुत की और
इंसानों को रौंदकर
बताते हैं,
दरिया का विकल्प बोतलें नहीं होतीं|
_________________________________
मैं मारी जाऊँगी
मैं उस भीड़ के द्वारा मारी जाऊँगी
जिससे भिन्न सोचती हूँ|
भीड़-सा नहीं सोचना
भीड़ के विरुद्ध होना नहीं होता है|
ज्यादातर भीड़ के भले के लिए होता है
ताकि भीड़ को भेड़ की तरह
नहीं हाँका जा सके|
यह दर्ज फिर भी हो
कि
भिन्न को प्रायः भीड़ ही मारती है|
_______________________________
अफ़वाह
अफ़वाह है कि एक बकरी है
जो चीर देती है सींग से अपने, छाती शेर की|
ख़रगोश बिल में दुबका है,
बाघ माँद में डर से,
लोमड़ी और गीदड़ नहीं बोल रहे हैं कुछ भी|
पर एक जोंक है
बिना दांत, हड्डी के रीढ़ वाली
वह चूस आयी है सारा खून बकरी का|
कराहती बकरी कह रही है-
"अफ़वाह की उम्र होती है,
सच्चाई ने मौत नहीं देखी है
क्योंकि यह न घटती है, न बढ़ती है|"
____________________________________
अनामिका अनु
जनवरी 1982 को जन्मी केरल निवासी अनामिका अनु मूलतः बिहार के मुजफ्फरपुर से आती हैं| वनस्पति विज्ञान में एम.एससी. और पीएच,डी. अनामिका अनु का 'इंजीकरी' नामक एक काव्य-संग्रह तथा प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ, कहानियाँ एवं अनुवाद प्रकाशित हुए हैं| 'यारेख' पुस्तक का संपादन भी किया है|
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें