भूलना
अनवरत देखते हुए भी
भूला जा सकता है चीजों को
आकाश बन सकता है एक नीला खोखल
अन्धकार
मृत्यु के तल में तैरती आँख
चाँद को भूलने के बाद
रात में खुदा हुआ एक गोल गड्ढा दीखता है
जिसमें से झाँकते हैं
रात में ओझल हुए चेहरे
जैसे बुढापे की झुर्रियों में से
झाँकता हो बचपन का धूमिल मुख
अपनी शक्ल भूलने पर
आईने में दीखता है
एक अनजान व्यक्ति
जिसकी चौड़ी फैली आँखों के भीतर
एक असंभव प्रतिसंसार भर रिक्तता और
असंख्य स्वप्नों की उदासी होती है कैद
मृत्यु तक पीछा करती हैं
बचपन में भूले चेहरे की रेखाएँ
लौट नहीं जा सकते अब वापस
पुरानी जगहें भूल चुकी हैं
हमारे नाम और चेहरे|
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टूटता वृक्ष
टूटता वृक्ष बहुत धीमी गति से
पृथ्वी को सौंपता है
अपने आध्यात्म के सूत्र
घास को सौंपता है अपनी छाल
चढ़ आने की जगह
अनेक गिलहरियों, चिड़ियों, बाँबियों में रहते जीवों को
अपना कष्ट जर्जर शरीर
और अपनी क्षीण होती आत्मा
कि जब उसके ह्रदय से पूर्णतः लुप्त हो जाए जीवन का संगीत
तब भी पृथ्वी पर जीवन के सर्वत्र अनुनाद में
वह जोड़ सके अपना एक स्वर
ऐसे होता है वह अमर
जिन भी दु:स्वप्नों में मैं टूटता हूँ, ढहता हूँ
उनमें सबसे अधिक दिखाई देते हैं प्रियजन
और जैसे सीनों पर धरे सुराख़
उनकी विवर्ण, जर्जर आत्माएँ|
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निकलो रात
निकलो रात
अन्धकार के अपने झूठे आवरण से
किसी मूक यातना के पुराने दृश्य से
किसी दुख के बासी हो चुके
प्राचीन वृत्तांत से निकलो बाहर
उस पहले डरावने स्वप्न से निकलो
निकलो शहज़ादी की उनींदी कहानियों से
और हर कहानी के ख़त्म होने पर सुनाई देने वाली
मृत्यु की ठंडी सरगोशियों से
अंधी स्मृतियों में बसे
उन पागल वसंतों के
अनगढ़ व्याख्यान से निकलो
निकल आओ
आकाश से|
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एकांत
रात के सबसे उबाऊ क्षण
घड़ी की अनवरत टिकटिक
चाहे जो कहे तुमसे
लेकिन अकेला ब्रह्माण्ड में कुछ नहीं होता
उदाहरण के लिए
जिस शुष्क पत्ती को तुमने कुचल दिया था कल
उसके अवशेषों में अब तक
अनगिनत चीजें मुखरित होकर बोलती हैं
उसमें कितना सारा अतीत है,
जीवन के कितने रंग,
कितने राग,
कितने झरने,
कितनी आग
इसमें ऋतुओं के वे आख्यान दर्ज हैं जो वृक्ष ने नहीं सुने, किसी दूसरी पत्ती ने भी नहीं
धूप के ह्रदय में कुछ ऐसा गोपन था जो उसने बस इससे ही कहना चुना
विस्मृति की भाषा बोलता पतझर कितने अलग संगीत में विन्यस्त हुआ इसकी शिराओं में
कोई नहीं जानता कि रात क्या बुदबुदाती थी इससे हर रोज़
यह जब गिरा पृथ्वी पर
तो जिस सौम्य सिहरन से कांपा पृथ्वी का अंतर
उसकी धुँधली याद शायद कभी पूरी तरह नहीं मिटेगी
इसके होने की कथा ईश्वर तक पहुँच सकती है
अब बहुत सहजता से
निकाल लिए जा सकते हैं गंभीर दार्शनिक निष्कर्ष
लेकिन दरअसल इतनी ही बात खरी है, और सच्ची
कि अकेला कुछ नहीं होता ब्रहांड में|
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पुराना आदमी
अकेली दीवारों जैसे
हाथों में जमती काई
बंद आँखों पर जमी होती गर्द
टूट कर इधर-उधर बिखरे होते पलस्तर
और बरसात में
भीतर टप-टप गिरता रहता सीलन का
पानी
हर रात
उसके अन्दर
कोई भी जा सकता था
सुन सकता था
अपनी ही आवाज़ गूँजकर आती
बंद कमरों से
भीतर से खोखली थीं दीवारें
निरर्थक था स्मृतियों का चिट्ठा
अब बस देखना था
कि वह कब ढहेगा|
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वसु गंधर्व
2001 में जन्मे युवा कवि वसु गंधर्व ने स्नातक की शिक्षा पूर्ण की है|
इनकी एक काव्य कृति 'किसी रात की लिखित उदासी'
प्रकाशित हुई है| कई पत्रिकाओं तथा वेब ब्लॉग्स पर इनकी
कविताएँ प्रकाशित होती रही हौं| कविता के अतिरिक्त दर्शन,
अर्थशास्त्र, विश्व साहित्य में इनकी रूचि है |
ये शास्त्रीय संगीत में भी प्रशिक्षित हैं|
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