1. मातृत्व
जैविक मातृत्व से भी बड़ा है
सृष्टि का मातृत्व
मेरे स्वप्न में आती है
वह गुलाम अफ्रीकी काली महिलाएँ
जो बेच दी गई कैरेबियाई द्वीपों अमेरिका और यूरोप के तमाम हिस्सों में
भर दी जाती थी पानी के जहाजों में इतने छोटे केबिनों में
जहाँ पैर फैलाने की जगह तक नहीं होती थी
लंबी यात्राओं में
मातृभूमि की स्मृति में
उन्हें याद रहता प्रतिपल
मोटे चावल का वही अफ्रीकी स्वाद
गुलाम औरतें जिन्हें जोत दिया गया यूरोपियन प्लांटेशन में
जहाँ विषम परिस्थितियों में भी उग आता था उनका धान
गुलाम औरतें संपत्ति के नाम पर मात्र स्मृति लेकर आई थी
पुरखों द्वारा अर्जित किए गए
पारंपरिक ज्ञान और अपनी स्मृति में रचे बसे
चावल के स्वाद को
उन्होंने हर जगह रोपा
जहाँ भी उन्हें रखा गया
सृष्टि का मातृत्व कितना प्रबल था उनमें
जिसे बचाने के लिए
अफ्रीकी औरतें अपनी बेटियों के बालों में
गूँथ देती थी धान के बीज रात्रि में
इस भय से कि सुबह उन्हें बेच न दिया जाए
एक अजनबी मुल्क की मिट्टी में
और रसोई में
जिन्होंने फैला दी अपने स्वाद की खुशबू
और भर दिए उनकी संततियों के घर भंडार!
सृष्टि का मातृत्व
मेरे स्वप्न में आती है
वह गुलाम अफ्रीकी काली महिलाएँ
जो बेच दी गई कैरेबियाई द्वीपों अमेरिका और यूरोप के तमाम हिस्सों में
भर दी जाती थी पानी के जहाजों में इतने छोटे केबिनों में
जहाँ पैर फैलाने की जगह तक नहीं होती थी
लंबी यात्राओं में
मातृभूमि की स्मृति में
उन्हें याद रहता प्रतिपल
मोटे चावल का वही अफ्रीकी स्वाद
गुलाम औरतें जिन्हें जोत दिया गया यूरोपियन प्लांटेशन में
जहाँ विषम परिस्थितियों में भी उग आता था उनका धान
गुलाम औरतें संपत्ति के नाम पर मात्र स्मृति लेकर आई थी
पुरखों द्वारा अर्जित किए गए
पारंपरिक ज्ञान और अपनी स्मृति में रचे बसे
चावल के स्वाद को
उन्होंने हर जगह रोपा
जहाँ भी उन्हें रखा गया
सृष्टि का मातृत्व कितना प्रबल था उनमें
जिसे बचाने के लिए
अफ्रीकी औरतें अपनी बेटियों के बालों में
गूँथ देती थी धान के बीज रात्रि में
इस भय से कि सुबह उन्हें बेच न दिया जाए
एक अजनबी मुल्क की मिट्टी में
और रसोई में
जिन्होंने फैला दी अपने स्वाद की खुशबू
और भर दिए उनकी संततियों के घर भंडार!
2. बूढ़ा नीम
कोई पहर है रात का
शायद तीसरा
घड़ी की टिक-टिक
एक पचपन
एक छप्पन…
निर्जन समय की चीत्कार
पानी की टिप-टिप
अँधेरे की सायँ-सायँ
बूढ़े नीम का स्याह तना
भीगे पत्तों की हरहराहट से भरा
देखता भौंचक, हैरान
मेरे दुख के हरेपन की काई को ओढ़े
मेरे पैरों की फिसलन को थामें
देखता रुग्णाई देह से
नीम मेरे पिता की तरह बूढ़ा हो गया है
मेरी माँ की झुर्रियाँ उभर आई हैं उसके तने में
मेरे हर्फ़ इन दिनों
उसकी पत्तियों की तरह झड़ रहे हैं
यहाँ-वहाँ बिखर रहे हैं हवा में
मैं देख रही हूँ नंगी आँखों से
दिशाहीन समय की अनियमित्ता को भागते हुए
जैसे भाग आई थी मैं
घर से
पिछले माह गंगा के घाट पर
बिना सोचे-समझे
प्रवाह ने बताया
लोग भटक जाते हैं गलत राहों में चलते हुए
लेकिन
नदी जानती है अपने बहने की दिशा
मैं टकरा रही थी
बहाव के विपरीत
हवा के थपेड़ों से
यह दुनिया एक भूलभूलैया में
तब्दील होती जा रही है
रात के इस पहर में
घोर शांति है
सन्नाटा कह रहा है
सभी दिशाएँ कहीं जाती हैं
लेकिन कहाँ?
नीम चुप क्यों खड़ा है
बरसों से!
बताओ तो?
शायद तीसरा
घड़ी की टिक-टिक
एक पचपन
एक छप्पन…
निर्जन समय की चीत्कार
पानी की टिप-टिप
अँधेरे की सायँ-सायँ
बूढ़े नीम का स्याह तना
भीगे पत्तों की हरहराहट से भरा
देखता भौंचक, हैरान
मेरे दुख के हरेपन की काई को ओढ़े
मेरे पैरों की फिसलन को थामें
देखता रुग्णाई देह से
नीम मेरे पिता की तरह बूढ़ा हो गया है
मेरी माँ की झुर्रियाँ उभर आई हैं उसके तने में
मेरे हर्फ़ इन दिनों
उसकी पत्तियों की तरह झड़ रहे हैं
यहाँ-वहाँ बिखर रहे हैं हवा में
मैं देख रही हूँ नंगी आँखों से
दिशाहीन समय की अनियमित्ता को भागते हुए
जैसे भाग आई थी मैं
घर से
पिछले माह गंगा के घाट पर
बिना सोचे-समझे
प्रवाह ने बताया
लोग भटक जाते हैं गलत राहों में चलते हुए
लेकिन
नदी जानती है अपने बहने की दिशा
मैं टकरा रही थी
बहाव के विपरीत
हवा के थपेड़ों से
यह दुनिया एक भूलभूलैया में
तब्दील होती जा रही है
रात के इस पहर में
घोर शांति है
सन्नाटा कह रहा है
सभी दिशाएँ कहीं जाती हैं
लेकिन कहाँ?
नीम चुप क्यों खड़ा है
बरसों से!
बताओ तो?
3. निर्वासन का दर्द
इन दिनों
इस रुके हुए दौर में
विश्वास का चाबुक
पीठ को लहूलुहान किए है
हमारी आशाएँ जब्त कर ली गई हैं
हमारे सपनों के पैबंध
कटे हुए अंगों की तरह
नफ़रत से फेंक दिए गए है अँधेरे घने जंगल में
यह जंगल भेड़ियों के झुंड से घिरा है
नुकीले दाँतों से
टपकता हुआ खून
कौन देख पाएगा?
मैंने ईश्वर को लड़खड़ाते हुए देखा है
वह छोटी बच्ची जो रोज़ मुझे मंदिर में ले जाती थी
उदास है
निर्वासन का अर्थ वह नहीं समझती
नफ़रत और विश्वासघात भी नहीं जानती क्या है
लेकिन उससे छीन ली गई वे दीवारें
जहाँ उसने सीखी आड़ी-तिरछी रेखाएँ खींचना
बनाना परिवार के चित्र
जहाँ एक वक्राकार रेखा से
बना देती है वह मुस्कान
दो चोटी वाला अपना स्केच
और लिखती है पापा पागल हैं
जिन दीवारों को
भर दिया था उसने
मांगलिक चिह्नों से,
निर्वासन सोती हुई बच्ची की आँख में एक तीर की तरह चुभा
और टपकने लगा खून
खाली कमरा अब चित्रों से नहीं
खून के छीटों से भरा है
बच्ची रो रही है
यह मेरे बचपन का घर है
मत निकालो!
इस रुके हुए दौर में
विश्वास का चाबुक
पीठ को लहूलुहान किए है
हमारी आशाएँ जब्त कर ली गई हैं
हमारे सपनों के पैबंध
कटे हुए अंगों की तरह
नफ़रत से फेंक दिए गए है अँधेरे घने जंगल में
यह जंगल भेड़ियों के झुंड से घिरा है
नुकीले दाँतों से
टपकता हुआ खून
कौन देख पाएगा?
मैंने ईश्वर को लड़खड़ाते हुए देखा है
वह छोटी बच्ची जो रोज़ मुझे मंदिर में ले जाती थी
उदास है
निर्वासन का अर्थ वह नहीं समझती
नफ़रत और विश्वासघात भी नहीं जानती क्या है
लेकिन उससे छीन ली गई वे दीवारें
जहाँ उसने सीखी आड़ी-तिरछी रेखाएँ खींचना
बनाना परिवार के चित्र
जहाँ एक वक्राकार रेखा से
बना देती है वह मुस्कान
दो चोटी वाला अपना स्केच
और लिखती है पापा पागल हैं
जिन दीवारों को
भर दिया था उसने
मांगलिक चिह्नों से,
निर्वासन सोती हुई बच्ची की आँख में एक तीर की तरह चुभा
और टपकने लगा खून
खाली कमरा अब चित्रों से नहीं
खून के छीटों से भरा है
बच्ची रो रही है
यह मेरे बचपन का घर है
मत निकालो!
4. बिना पुल की नदी
चल डूबें!
यह बिना पुल की नदी है
यह कहते हुए
उसने मेरा हाथ पकड़
नदी में छलांग लगा दी
मैं कश्तियों को
किनारे से बाँध आया था
वह छोड़ आई थी
घर की चौखट को
सदा के लिए
दो प्रेमियों को
नदी मिला भी सकती है
यह मर के जाना जाता है
यह बिना पुल की नदी है
यह कहते हुए
उसने मेरा हाथ पकड़
नदी में छलांग लगा दी
मैं कश्तियों को
किनारे से बाँध आया था
वह छोड़ आई थी
घर की चौखट को
सदा के लिए
दो प्रेमियों को
नदी मिला भी सकती है
यह मर के जाना जाता है
5. अपरिजित भाषाओं का गुढ़
सबसे नुकीले सिरे
होने चाहिए कविताओं के
मैंने बरसों चिट्ठियाँ लिखी
हर बार पहुँच जाती
किसी अदृश्य पते पर
सुना था मौन अपरिचित भाषा का गूढ़ हैं
लेकिन कविताओं को तो मारक होना चाहिए
मीठे ज़हर और अच्छी बातों से मारे जाने का
दुख दीर्घगामी होता है
अभिव्यंजनाओं के दुराग्रह में
एक उफ़नती नदी
एक मौन के पुल से गुज़रती है
यह कितना बेमेल है
नदी चाहती है डूबना
पुल चाहता है पार होना!
होने चाहिए कविताओं के
मैंने बरसों चिट्ठियाँ लिखी
हर बार पहुँच जाती
किसी अदृश्य पते पर
सुना था मौन अपरिचित भाषा का गूढ़ हैं
लेकिन कविताओं को तो मारक होना चाहिए
मीठे ज़हर और अच्छी बातों से मारे जाने का
दुख दीर्घगामी होता है
अभिव्यंजनाओं के दुराग्रह में
एक उफ़नती नदी
एक मौन के पुल से गुज़रती है
यह कितना बेमेल है
नदी चाहती है डूबना
पुल चाहता है पार होना!
6. प्रेम प्रेम गाकर उसने
प्रेम प्रेम गाकर उसने
प्रेम को इतना बेज़ार बना दिया था
कि अब प्रेम
आवारा हथिनी का भारी पैर था
जहाँ पड़ता एक गहरा निशान छोड़ जाता
गड्ढों को पाटने का भार
पीठ पर कूबड़ की तरह उग आया था
चेहरे को ढकती है ब्रांड के किसी दूधिया रंग से
वह सुबह उठती और चाय चढ़ा देती
चीनी कम डालती और मिठास के बारे में अधिक सोचती
अवरुद्ध है उन्मुक्त दौड़
उबलती हुई चाय को लौटा दिया जाता है
छलनी की छपाक से
पैन की तलहटी में
कोई पुकार नहीं है आस-पास
याद आती है रात की चीखें
वह जगाता है अपने आदिम पुरुष को
स्त्री की माद से अनभिज्ञ
जुझारू पुरुष दहाड़ता है
जीत के फर्ज़ी दस्तावेज़ों पर
हस्ताक्षर करके
और भूल जाता है सुबह
वह एक भरी-पूरी स्त्री थी!
प्रेम को इतना बेज़ार बना दिया था
कि अब प्रेम
आवारा हथिनी का भारी पैर था
जहाँ पड़ता एक गहरा निशान छोड़ जाता
गड्ढों को पाटने का भार
पीठ पर कूबड़ की तरह उग आया था
चेहरे को ढकती है ब्रांड के किसी दूधिया रंग से
वह सुबह उठती और चाय चढ़ा देती
चीनी कम डालती और मिठास के बारे में अधिक सोचती
अवरुद्ध है उन्मुक्त दौड़
उबलती हुई चाय को लौटा दिया जाता है
छलनी की छपाक से
पैन की तलहटी में
कोई पुकार नहीं है आस-पास
याद आती है रात की चीखें
वह जगाता है अपने आदिम पुरुष को
स्त्री की माद से अनभिज्ञ
जुझारू पुरुष दहाड़ता है
जीत के फर्ज़ी दस्तावेज़ों पर
हस्ताक्षर करके
और भूल जाता है सुबह
वह एक भरी-पूरी स्त्री थी!
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