गुरुवार, 11 सितंबर 2025

डॉ. नीलम सिंह

 1. सौदागर

 
वह सौदागर था 
फूलों का सौदागर 
बेचा सबको थोड़ा-थोड़ा 
फूल किसी और को बेचा 
कलियाँ किसी और को 
डाल किसी और को 
बाग किसी और को 

वह सौदागर था 
समय का सौदागर 
बेचा सबको थोड़ा-थोड़ा 
लम्हा किसी और को बेचा 
घंटा किसी और को 
दिन किसी और को 
रात किसी और को

वह सौदागर था 
ख्वाबों का सौदागर 
बेचा सबको थोड़ा-थोड़ा 
ख़्यालों किसी और को बेचा 
नैन किसी और को 
नींद किसी और को 
वादा किसी और को 

वह सौदागर था 
ईमान का सौदागर 
बेचा सबको थोड़ा-थोड़ा 
सच किसी और को बेचा 
झूठ किसी और को 
प्रेम किसी और को 
नफ़रत किसी और को
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2. बहनें 


तन्हाइयों और स्मृतियों 
का यह 
बहनापा शायद 
उतना ही पुराना है 
जितनी पुरानी है दुनिया 

बहनें 
प्रायः 
थामती हैं 
जब लड़खड़ा रहा होता है 
जीवन 
वैसे ही 
जैसे स्मृतियाँ  
धमक पड़ती है 
जब खाली होता है 
मन

मगन मन
वैसे ही स्मृतियों से 
दूर रहता है 
जैसे रहती है 
ब्याहता बहन 
अपनी दुनिया में 

गाहे-बगाहें 
आती है 
न्योते बुलावे पर 
पिता,भाई 
नाते रिश्ते निभाने 
जैसे 
आती हैं 
यादें 
हमेशा 
किसी जुड़ाव से 
वे नहीं जाती 
अनजान जंगलों में ।
वो गीली जमीं 
खोजती हैं 
जहाँ पनप सके 
कुछ खट्टा 
कुछ मीठा
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3. खिड़की 


रहती है दीवार में एक खिड़की - 
और खिड़की में रहती हैं 
आँखें ...
जो ताकती हैं 
झाँकती हैं 
जीवन के भीतर और बाहर ।
बाहर खड़ा 
झाँकना चाहता है अंदर ।
अंदर की आँखें
देखती है,
बाहर 
जहाँ है खुला आकाश ..
मगर छत नहीं है।
अंदर है छत 
मगर खुला आकाश नहीं है ।
खिड़की उन दोनों के बीच है 
उससे न बाहर जा सकते हैं 
और ना 
आ सकते हैं अंदर।
केवल देख सकते है
दो सीमाओं को 
भीतर से बाहर 
और 
बाहर से भीतर 
एक मन चाहता है 
बाहर का आकाश
एक मन भीतर को 
छोड़ता नहीं है 
दोनों के बीच
रहती है एक खिड़की
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4. तिजोरी 


स्मृतियों के तिजोरी में 
रखे जाते हैं 
अनछुए लम्हे 
वो लम्हे 
जो नाजुक होते हैं 
ओस की बूँदों की तरह 
वो लम्हे 
जिन्हें हम छुपाते है 
दुनिया से 
वो लम्हे 
जिन्हें हम बचाते है 
धूप से 
हवा से 
रूप से 
नैतिकता के उसूलों से 
वो लम्हे 
जो रखे जाते हैं 
अधखुले आँखो में 
साँसों में 
वो अक्सर 
टूट जाते हैं 
अपने ही हाथों में ।
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5. अस्मिता 


नहीं मिलते 
रात और दिन
नहीं मिलते 
चाँद और सूरज
नहीं मिलते 
दो किनारे
नदी के

शायद 
सृष्टि ने ही बनाया होगा 
यह द्वैत 
ताकि 
साथ रहकर भी 
बनी रहे 
अस्मिता 
अपनी 
अपनी
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डॉ. नीलम सिंह















डॉ. नीलम सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध हिंदू कॉलेज के हिंदी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। इन्होंने 
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से धूमिल के काव्य पर शोध किया है। नीलम जी कविताओं के साथ-साथ गद्य भी लिखती हैं और सामयिक विषयों पर भी अपनी लेखनी चलाती हैं। 
संपर्क-9953808001 

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