1. चौराहा और पुस्तकालय
चौराहे पर खड़ा आदमी
बरसों से,
खड़ा ही है चौराहे पर
टस से मस भी नहीं हुआ!
जबकि—
पुस्तकालय में खड़ा आदमी
खड़े-खड़े ही पहुँच गया
देश-दुनिया के कोने-कोने में
जैसे हवा-सूरज, धूप-पानी
और बादल
फिर भी देश में
सबसे अधिक हैं चौराहे ही।
और बादल
फिर भी देश में
सबसे अधिक हैं चौराहे ही।
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2. ख़ून से अब नमक निकल रहा है
संघर्ष से
ज़िंदगी निकलती है
ज़िंदगी से अब संघर्ष निकल रहा है
ज़िंदगी निकलती है
ज़िंदगी से अब संघर्ष निकल रहा है
पानी से
नदी निकलती है
नदी से अब पानी निकल रहा है
नदी निकलती है
नदी से अब पानी निकल रहा है
किसानों से
खेत निकलते हैं
खेत से अब किसान निकल रहे हैं
खेत निकलते हैं
खेत से अब किसान निकल रहे हैं
रिश्तों से
परिवार निकलते हैं
परिवार से अब रिश्ता निकल रहा है
परिवार निकलते हैं
परिवार से अब रिश्ता निकल रहा है
नमक से
ख़ून निकलता है
ख़ून से अब नमक निकल रहा है।
ख़ून निकलता है
ख़ून से अब नमक निकल रहा है।
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3. कलम के कंधे पर इतिहास
भरोसा है इसलिए
हवा के कंधे पर पेड़
पेड़ के कंधे पर पंछी
पेड़ के कंधे पर पंछी
धरती के कंधे पर नदी-पहाड़
नदी-पहाड़ के कंधे पर आसमान का सिर है
नदी-पहाड़ के कंधे पर आसमान का सिर है
भरोसा है इसलिए
सड़क के कंधे पर विकास
कलम के कंधे पर इतिहास
सड़क के कंधे पर विकास
कलम के कंधे पर इतिहास
खेत के कंधे पर किसान का सिर है
भरोसा है
इसलिए इंसान के कंधे पर
इंसान का सिर है।
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4. स्त्रियों ने कथाएँ कही
पुरूषों ने कथाएँ कहीं
स्त्रियों ने भी कथाएँ कहीं
स्त्रियों ने भी कथाएँ कहीं
पुरूषों में
कुछ ही पुरूष समझ पाए
कुछ ही पुरूष समझ पाए
स्त्रियों ने जो कथाएँ कहीं
कथाएँ नहीं
अपनी-अपनी व्यथाएँ कहीं।
कथाएँ नहीं
अपनी-अपनी व्यथाएँ कहीं।
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5. जमीनें देख रही थीं
किसान देख रहे थे
केंद्र और राज्य सरकारों की ओर
केंद्र और राज्य सरकारें
देख रही थीं—
केंद्र और राज्य सरकारों की ओर
केंद्र और राज्य सरकारें
देख रही थीं—
राष्ट्रीय-बहुराष्ट्रीय कंपनियों की ओर
राष्ट्रीय-बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ देख रही थीं
किसानों की ज़मीनों की ओर
राष्ट्रीय-बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ देख रही थीं
किसानों की ज़मीनों की ओर
किसानों की ज़मीनें देख रही थीं
किसानों की ओर
किसान देख रहे थे
केंद्र और राज्य सरकारों की ओर।
किसानों की ओर
किसान देख रहे थे
केंद्र और राज्य सरकारों की ओर।
खेत के कंधे पर किसान का सिर है
भरोसा है इसलिए
भरोसा है इसलिए
इंसान के कंधे पर इंसान का सिर है।
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खेमकरण 'सोमन'
खेमकरण 'सोमन' का जन्म 2 जून 1984 नैनीताल उत्तराखंड में हुआ। खेमकरण 'सोमन' हिंदी लघुकथा पर पीएच.डी कर चुके हैं। 'नई दिल्ली दो सौ बत्तीस किलोमीटर', 'पड़ाव और पड़ताल-15', 'लघुकथा सप्तक' (लघु कथा संकलन) आदि इनकी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इन्हें 'दैनिक जागरण' द्वारा 'युवा प्रोत्साहन पुरस्कार' और 'कथा देश' द्वारा 'अखिल भारतीय हिंदी लघु कथा प्रतियोगिता' में तृतीय पुरस्कार प्राप्त है।