बुधवार, 11 जून 2025

प्रेम रंजन अनिमेष

1. बच्चे की स्लेट पर लिखे कुछ सवाल


क्या सच में एक दिन
स्वच्छ जल रह जाएगा केवल नारियल में

और खाली बाँस के खोल में साँस की हवा
क्या बस जुगनुओं में रह जाएगी सच की लौ

और उर्वर मिट्टी केंचुओं के बिल में
श्यामपट इतना बड़ा कोरा फैला हुआ

और ज़रा-सी खड़िया नहीं होगी
‘छुट्टी’ लिखने के लिए भी

क्या सच में एक दिन
झींगुरों के पास ही रह जाएगी पुकार

और चिड़ियों को भी
पता नहीं चलेगा सुबह होने का...?
----------------------------------------------------------------


2. भरोसा - एक


दस्तक दो
तो सबसे छोटे को
दो आवाज़
भले ही वह शिशु हो

चलना नहीं जानता हो अभी
जो छोटे हैं
उन्हीं से
सबसे अधिक उम्मीद है

दरवाज़ों के
खुलने की
----------------------------------------------------------------


3. भरोसा - दो


भरोसा रखना होगा

डाकिया पहुँचा देगा चिट्ठियाँ
और गाड़ी ले जाएगी मुक़ाम तक

कहीं न कहीं अनजाने होंगे सभी
और वहाँ यह भरोसा ही देगा साथ

कि पूछने पर कोई सही बताएगा रास्ता
और किसी सुनसान में गिर गए चलते-चलते

तो कुत्ते भी खींच लाएँगे बस्ती में
भरोसा रखना होगा

नई माँओं के सीने में उतरेगा दूध
नए फूलों से उमगेगी गंध

चाहे कुछ हो कभी
धोखा नहीं देगी आँखों की नमी

भरोसा रखना होगा
कि नमक की जगह नहीं मिला होगा ज़हर

कि लौटने पर वहीं मिलेगा घर
सूर्य उगेगा फिर

अगली सुबह खुलेंगी
और देखेंगी आँखें

कुछ भरोसों की रेज़गारी
चाहिए गाढ़े दिनों के लिए

इसके बिना
प्यार नहीं किया जा सकता

गीत नहीं रचे जा सकते
जूझा नहीं जा सकता जीवन में
----------------------------------------------------------------


4. दाय


मिट्टी ने उगाया
हवा ने झुलाया
धूप ने पकाया

बौछारों ने भरा रस
नहीं सब नहीं तुम्हारा

सब मत तोड़ो
छोड़ दो कुछ फल पेड़ पर

पंछियों के लिए
पंथियों के लिए
----------------------------------------------------------------


5. ठिठकना


एक मिनट के लिए
किसी का हाल पूछने रुकूँगा
और बारिश में घिर जाऊँगा

एक मिनट
राह बताने लगूँगा अजनबी को
और गाड़ी छूट जाएगी

एक मिनट थमकर
एक वृद्ध को सड़क पार कराऊँगा
और काम पर कट चुकी होगी मेरी हाज़िरी

फिर भी चलते-चलते
ठिठकूँगा
एक पल के लिए
कि चौबीसों घंटे में अब
इसी एक मिनट में
बची है ज़िंदगी!
----------------------------------------------------------------


6. छाता


जिनके सिर ढँकने के लिए
छतें होती हैं
वही रखते हैं छाते

हर बार सोचता हूँ
एक छत का जुगाड़ करूँगा

और लूँगा एक छाता
इस शहर के लोगों के पास जो छाता है

उसमें कोई एक ही आता है
इसलिए

सोचता हूँ
मैं लूँगा

तो लूँगा आसमान
कि जिसमें सब आ जाएँ

और बाहर खड़ा भीगता रहे
बस मेरा अकेलापन!
----------------------------------------------------------------

7. पहला नाम


बच्चे ने सुना

माँ
त्याग का
दूसरा नाम है

बच्चे ने जाना

माँ
चूल्हे की आग का
दूसरा नाम है

माँ का पहला नाम
ढूँढ़ रहा है बच्चा
----------------------------------------------------------------

प्रेम रंजन अनिमेष


कवि प्रेम रंजन अनिमेष का जन्म बिहार में हुआ। उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से अँग्रेज़ी भाषा और साहित्य की शिक्षा प्राप्त की। 'मिट्टी के फल', 'कोई नया समाचार', 'संगत' और 'अँधेरे में अंताक्षरी' उनके प्रकाशित कविता संग्रह हैं। 'अच्छे आदमी की कविताएँ' नाम से उनकी रचनाएँ ईबुक के रूप में प्रकाशित हैं। उन्हें कविता के लिए भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। वे कहानी और बाल कविता भी लिखते हैं। 
कवि प्रेम रंजन ने नोबल पुरस्कार प्राप्त आयरिश कवि सीमस हीनी और अग्रणी अमरीकी कवि विलियम कार्लोस विलियम्स की कविताओं का अनुवाद किया है। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

लोकप्रिय पोस्ट