1. लड़कियाँ
कवि के पहले ड्राफ़्ट की भाँति
मान ली जाती हैं
लड़कियाँ
वे लिखी जाती हैं
मरोड़कर
फेंक देने के लिए।
मान ली जाती हैं
लड़कियाँ
वे लिखी जाती हैं
मरोड़कर
फेंक देने के लिए।
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2. गेंदा
तुमने कभी गेंदे का फूल देखा है?
देखा है कि कैसे खिलता है
थोड़ा-थोड़ा…
एक दिन में नहीं लाकर रख देता है
अपने हफ़्तों के किए हुए श्रम को
मेहनत के एक-एक कण को
उभारता है
धीरे-धीरे
इस बीच
गर तुम्हारे सब्र का बाँध टूट जाए
तो घूम आना कुछ देर
गुड़हल के पास
वह ज़्यादा इंतज़ार नहीं कराता।
जब तक तुम उसे
खिलता-मुरझाता देख आओगे
तब तक गेंदे का ये फूल
इंतज़ार करता रहेगा तुम्हारा
और यूँ ही खिलता रहेगा।
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देखा है कि कैसे खिलता है
थोड़ा-थोड़ा…
एक दिन में नहीं लाकर रख देता है
अपने हफ़्तों के किए हुए श्रम को
मेहनत के एक-एक कण को
उभारता है
धीरे-धीरे
इस बीच
गर तुम्हारे सब्र का बाँध टूट जाए
तो घूम आना कुछ देर
गुड़हल के पास
वह ज़्यादा इंतज़ार नहीं कराता।
जब तक तुम उसे
खिलता-मुरझाता देख आओगे
तब तक गेंदे का ये फूल
इंतज़ार करता रहेगा तुम्हारा
और यूँ ही खिलता रहेगा।
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3. मुझे कविता नहीं आती
रोटी सेंकते
नज़र अटक जाती है
दहकते तवे की ओर
और हाथ
छू जाता है उससे
तब उफ़न पड़ती है
कविता।
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4. मैंने अपने जीवन के
सबसे उदास क्षणों पर
कविता तब लिखी
जब उस उदासी को लेकर
मैं सबसे ज़्यादा तटस्थ थी।
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कविता तब लिखी
जब उस उदासी को लेकर
मैं सबसे ज़्यादा तटस्थ थी।
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5. पिता का 49वाँ जन्मदिन
मैंने उनकी उम्र से आधी होते हुए देखा।
माथे की शिकन
जिसने कभी बैठना नहीं सीखा था
वह पिता की उम्र से
दुगुनी हो चुकी है।
रिटायरमेंट तक पहुँचने से पहले ही
पिता मना चुके होंगे
अपनी शिकन की
डायमंड जुबली।
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अर्पिता राठौर

अर्पिता जी दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए. कर चुकी हैं। इन्हें डिजिटल चित्रकारी का शौक है। इनकी रचनाएँ कविता कोश, हिंदवी, सदानीरा जैसे डिजिटल पटलों पर प्रकाशित हैं। आलोचना, बनास जन, मधुमती जैसी पत्रिकाओं में समय-समय पर इनके लेख प्रकाशित होते रहे हैं।
ईमेल - arpirathor@gmail.com
ये छोटी छोटी कविताएं मन को छू लेती हैं।इनमें एक सहज भाव गहनता है। संभावनाशील लेखन ! बहुत बधाई ... मंच और इस पर प्रस्तुत कवयित्री !
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