बुधवार, 17 जुलाई 2024

आशीष बिहानी

मार्गदर्शन

चौड़ी सपाट सड़क को 

फटी चट्टियों में पार करते नन्हें भिखारियों के हुजूम में से

एक स्कूटर धीरे-धीरे निकलता है 

जैसे सफ़ेद फॉस्फोरस को काटता चाकू

पापा की शर्ट को अपनी नन्हीं हथेलियों से कसकर थामे

स्कूटर पर बैठी लड़की 

ऊपर को देखती है

सड़क किनारे के हरे-भरे पेड़ों के बीच

एक झुंझलाए, उलझन में डूबे वैज्ञानिक-सा

अस्त-व्यस्त शाखाओं वाला निष्पर्ण पेड़

झाँकता है अँधेरे में से उसकी इन्द्रियों में 

शहर के आकारवान स्थापत्य में  

अकेला-उजाड़-विद्रूप-खूंसट 

कहता है, "तुम कौन हो बेटे?

तुम जानती हो कि तुम्हारे शरीर में नन्हीं कोशिकाएँ 

बड़े नियंत्रित तरीक़े से विभाजित हो रहीं हैं

और विशाल अणु सूट-बूट पहन कर 

काम पर निकले हैं

तुम्हारा बिंदु-सा अस्तित्व जड़ें फैलाए हैं

पूरे शहर के तलघरों में

तुम कभी मजबूत भुजाओं, गुस्साई आँखों 

और मांसल स्तनों वाली

औरत बनोगी

शहर और तुम घूमोगे एक दूसरे के पीछे गोल-गोल

तुमने सोचा है, कितनी लोचदार होगी तुम,

पर झुकते वक़्त कहाँ रुक जाओगी?'

लड़की फटी आँखों से सुनती रही 

शहर भर के भगोड़े प्रेतों के 

रैन बसेरे की बहकी खड़खड़ाहट 


घर पहुँचने पर उसकी माँ उसके छितराए बालों में 

तेल लगाएगी 

चोटी गूंथते हुए उसकी बात सुनकर मशविरा देगी

कि वो सड़क किनारे के उज्जड वैज्ञानिकों की

झुंझलाईं-बुदबुदाईं कविताएँ न सुने

वे भागे हुए प्रेतों के जहाज हैं

सिर्फ़ सिसकियाँ-छटपटाहट-चीखपुकार 

सुनने के लिए

कुछ भी कह देते हैं 

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महाखड्ड

तम से लबालब वातावरण में

आभास हुआ 

रोशनी की उपस्थिति का

कारगार के अदृश्य कोनों में 

चमक उठी आशा


उसने इकठ्ठा किया

धैर्य और हिम्मत

जमीन पर बिखरे 

पतले बरसाती कीचड़ की भांति

अपनी कठोर हथेलियों में,

और डगमगाता हुआ

भागा

अँधेरी मृगमरीचिका की ओर 

गिर पड़ा 

नन्हीं विषाक्त अड़चनों पर से|


यों दुर्गन्ध के सिंहासन पर

कीचड़ से अभिषिक्त,

ठठाकर हँसा 

टुकड़ों में बिखरी चमक को 

समय की चौखट में जमाकर

और बड़ी जिज्ञासा से ढूंढने लगा 

अर्थ, सिद्धांत, प्यार, ख़ुशी


उधेड़ दिए समय ने 

विक्षिप्तता से रंजित जल-चित्र

तीखी नोकों वाले 

त्रिभुजों और चतुर्भुजों में,

दब गया सत्य

कमर पर हाथ रखकर 

उछली चुनौती उसकी ओर,

"उधेड़ दी है तूने

अपने पैरों तले की जमीन

सत्य की तलाश में.....

अब बुन इसे पुनः

या गिर जा

विक्षिप्तता के महाखड्ड में|"

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 कानून

दुनिया के लोगों के हाथ बड़े लम्बे होते हैं

वे दरअसल हवा के मुख्य संघटक हैं

चारों ओर गीली जीभों की भांति

लपलपाया करते हैं

राहें उनके भय से मुड़ जातीं हैं

गुमनाम अँधेरी बस्तियों की ओर

और उतर जातीं हैं

गहरे कुओं में

जिनके पेंदों में हवाएँ चलना बंद कर देतीं हैं

स्तब्ध धूसर दीवारों के बीच वे तुम्हें घूरतीं हैं

और तुम उन्हें

डूबने के इंतज़ार में 

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बदलना 

लोग कहते हैं कि 

दुनिया बदल रही है

आगे बढ़ रही है

क्रमिक विकास के नतीज़तन 

पर ये सच नहीं है

क्योंकि हम आज भी गिरते हैं

उन्हीं खड्डों में

जो खोदे थे हमने 

लाखों साल पहले 

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यज्ञ

सड़क किनारे एक बहरूपिया 

इत्मीनान से सिगरेट सुलगाये

झाँक रहा है 

अपनी कठौती में


चन्द्रमा की पीली पड़ी हुई परछाई

जल की लपटों के यज्ञ

में धू-धू कर जल रही है

रात के बादल धुंध के साथ मिलकर

छुपा लेते हैं तारों को

और नुकीले कोनों वाली इमारतों

से छलनी हो गया है

आसमान का मैला दामन

ठंडी हवा और भी भारी हो गयी है

निर्माण के हाहाकार से


उखाड़ दिया गया है

ईश्वरों को मानवता के केंद्र से

और अभिषेक किया जा रहा है

मर्त्यों का

विशाल भुजाओं वाले यन्त्र

विश्व का नक्शा बदल रहे हैं

  

उसके किले पर 

तैमूर लंग ने धावा बोल दिया है

उस "इत्मीनान" के नीचे 

लोहा पीटने की मशीनों की भाँति

संभावनाएँ उछल-कूद कर रही हैं

उत्पन्न कर रही हैं 

मस्तिष्क को मथ देने वाला शोर 


उसकी खोपड़ी से

चिंता और प्रलाप का मिश्रण बह चला है

और हिल रही हैं

आस्था की जड़ें


एक रंगविहीन परत के

दोनों ओर उबल रहा है 

अथाह लावा

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आशीष बिहानी   

11 मार्च 1992 को जन्मे  युवा कवि आशीष बिहानी हिंदी और मारवाड़ी दोनों भाषाओं में रचना करते हैं| देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं के साथ महत्त्वपूर्ण ई पत्रिकाओं में भी इनकी कविताएँ एवं आलेख प्रकाशित होते रहे हैं|

'अन्धकार के धागे' नामक एक काव्य-संग्रह 2017 में प्रकाशित हुआ है|

बीआईटी, पिलानी से अभियांत्रिकी तथा 'कोशिका एवं आण्विक जीव विज्ञान अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त कर सम्प्रति 'मॉन्ट्रियल चिकित्सकीय अनुसंधान संस्थान(कनाडा)' में शोधकार्य कर रहे हैं|

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