असफलता
सबसे मुश्किल होगा
शहर से वापस
घर, गाँव लौटना
तुम लौटोगे
सालों के रेत के बाद
बारिश की तलाश में
और तुम्हारा लौटना
ऐसे होगा
जैसे बोई गई फ़सल
पकने के वक़्त,
बर्बाद हुई और भूख के लिए कोसी गई.
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ईश्वर के बच्चे
क्या आपने,
ईश्वर के बच्चों को देखा है?
ये अक्सर,
सीरिया और अफ्रीका के खुले मैदानों में,
धरती से क्षितिज की और,
दौड़ लगा रहे होते हैं,
ये अपनी माँ की कोख से ही मजदूर हैं,
और पिता के पहले स्पर्श से ही युद्धरत हैं,
ये किसी चमत्कार की तरह,
युद्ध में गिराए जा रहे खाने के
थैलों के पास प्रकट हो जाते हैं,
और किसी चमत्कार की तरह ही अदृश्य हो जाते हैं,
ये संसद और देवताओं के
सामूहिक मंथन से निकली हुई संतानें हैं,
जो ईश्वर के हवाले कर दी गयी हैं,
ईश्वर की संतानों को जब भूख लगती है,
तो ये आस्था से सर उठा कर,
ऊपर आकाश में देखते हैं
और पश्चिम से आये देव-दूतों के हाथों मारे जाते हैं
ईश्वर की संतानें
उसे बहुत प्रिय हैं
वो उनकी अस्थियों पर लोकतंत्र के
नए शिल्प रचता है
और उनके लहू से जगमगाते बाज़ारों में रंग भरता है
मैं अक्सर
जब पश्चिम की शोख चमकती रात को
और उसके उगते सूरज के रंग को देखता हूँ
मुझे उसका रंग इंसानी लहू सा
खालिस लाल दिखाई देता है|
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डायन और बुद्ध
कुछ औरतें,
अपने पतियों,
और बच्चों को सोते हुए,
अकेला छोड़ चली गईं,
ऐसी औरतें,
डायन हो गईं,
कुछ पुरुष,
अपने बच्चों और बीवियों,
को सोते हुए,
अकेला छोड़ चले गए,
ऐसे पुरुष बुद्ध हो गए,
कहानियों में,
डायनों के हिस्से आए,
उल्टे पैर,
और बच्चे खा जाने वाले,
लंबे, नुकीले दांत,
और बुद्ध के,
हिस्से आया,
त्याग, प्रेम,
दया, देश,
और ईश्वर हो जाना |
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प्रेमिकाएँ
प्रेम में पड़ा पुरुष,
हर गलती के साथ,
अपने घर लौट जाता है,
और प्रेमिकाएँ लौटती हैं,
नीच, कुलटा और अभिशापित हो कर,
प्रेम में पुरुष,
हारता है,
और प्रेमिकाएँ, ठगी जाती हैं.
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घर से निकले लड़के
घर से निकले लड़के
शहर की संगीन रातों में
पिता की आँखों का सूरमा ढूँढते हैं
उनके कंधे
यौवन के पहले पहर में झुक रहे हैं
और पीठ पर शासन की लाठियों के गहरे निशान हैं
ये बेहया के फूल की तरह
अपने गाँवों से निकल
शहर के वर्जित इलाकों में उग आए हैं
मजिस्ट्रेट के हालिया बयान में
उनके होने की गंध मात्र से
शहर में कर्फ्यू का खतरा है
उनके रतजगे में माशूकाओं की आहट
धुंधली होती जा रही है
और उनकी आँखों में
बहन की महावर का रंग उतर आया है
माँ को अच्छी साड़ी पहनाने की
एक अदद इच्छा
सरकारी नौकरी की विज्ञप्तियाँ चर चुकी हैं
और ये एक सिगरेट और चाय की प्याली से
जैसे-तैसे, अपनी रिक्तता को बचाए जा रहे हैं
घर से निकले लड़के
सड़क से संसद तक
सपनों की तस्करी के बाद
जबजब कुछ नहीं रह जाते
तो उदास, अकेले, खाली हाथ
अन्तात्वोगात्वा
एक दिन घर लौट जाते हैं
लेकिन घर, उन तक, फिर कभी नहीं लौटता|
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आलोक आज़ाद
2 जुलाई 1990 को जन्मे आलोक आज़ाद पोस्ट-डॉक्टरेट शोधार्थी हैं|
बहुमत, पोषम पा, हिन्दवी, हिन्दीनामा, साहित्कीयनामा, कविताएँ और साहित्य जैसी साहित्यिक पत्रिकाओं और पोर्टल्स में कविताएँ प्रकाशित होती रही हैं| इनका एक काव्य-संग्रह 'दमन के खिलाफ़'(2019) भी प्रकाशित हो चुका है|
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