गुरुवार, 14 मार्च 2024

निर्मला पुतुल

 मेरे एकांत का प्रवेश द्वार 

यह कविता नहीं

मेरे एकांत का प्रवेश-द्वार है


यहीं आकर सुस्ताती हूँ मैं

टिकाती हूँ यहीं अपना सिर


ज़िंदगी की भाग-दौड़ से थक-हारकर

जब लौटती हूँ यहाँ

आहिस्ता से खुलता है 

इसके भीतर एक द्वार

जिसमें धीरे से प्रवेश करती मैं

तलाशती हूँ अपना निजी एकांत


यहीं मैं वह होती हूँ 

 जिसे होने के लिए मुझे

कोई प्रयास नहीं करना पड़ता 


पूरी दुनिया से छिटककर

अपनी नाभि से जुडती हूँ यहीं!


मेरे एकांत में देवता नहीं होते

न ही उनके लिए 

कोई प्रार्थना होती है मेरे पास


दूर तक पसरी रेत 

जीवन की बाधाएँ

कुछ स्वप्न और 

प्राचीन कथाएँ होती हैं


होती है-

एक धुँधली-सी धुन

हर देश-काल में जिसे 

अपनी-अपनी तरह से पकड़ती

स्त्रियाँ बाहर आती हैं अपने आपसे 


मैं कविता नहीं

शब्दों में ख़ुद को रचते देखती हूँ

अपनी काया से बाहर खड़ी होकर 

अपना होना!

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बाहामुनी

तुम्हारे हाथों बने पत्तल पर भरते हैं पेट हज़ारों

पर हज़ारों पत्तल भर नहीं पाते तुम्हारा पेट  


कैसी विडम्बना है कि

ज़मीन पर बैठ बुनती हो चटाईयाँ

और पंखा बनाते टपकता है 

तुम्हारे करियाये देह से टप....टप...पसीना....!


क्या तुम्हें पता है कि जब कर रही होती हो तुम दातुन 

तब कर चुके होते हैं सैकड़ों भोजन-पानी

तुम्हारे ही दातुन से मुँह-हाथ धोकर? 


जिन घरों के लिए बनाती हो झाडू

उन्हीं से आते हैं कचरे तुम्हारी बस्तियों में?


इस ऊबड़-खाबड़ धरती पर रहते 

कितनी सीधी हो बाहामुनी 

कितनी भोली हो तुम

कि जहाँ तक जाती है तुम्हारी नज़र

वहीँ तक समझती हो अपनी दुनिया 

जबकि तुम नहीं जानती कि तुम्हारी दुनिया जैसी

कई-कई दुनियाएँ शामिल है इस दुनिया में


नहीं जानती 

कि किन हाथों से गुजरती 

तुम्हारी चीजें पहुँच जाती हैं दिल्ली

जबकि तुम्हारी दुनिया से बहुत दूर है अभी दुमका भी!

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आदिवासी लड़कियों के बारे में

ऊपर से काली

भीतर से अपने चमकते दाँतों 

की तरह शान्त धवल होती हैं वे


वे जब हँसती हैं फेनिल दूध-सी 

निश्छल हँसी

तब झर-झराकर झरते हैं......

पहाड़ की कोख में मीठे पानी के सोते

 

जूड़े में खोंसकर हरी-पीली पत्तियाँ 

जब नाचती हैं कतारबद्ध

माँदल की थाप पर 

आ जाता तब असमय वसन्त


वे जब खेतों में 

फसलों को रोपती-काटती हुई

गाती हैं गीत

भूल जाती हैं ज़िन्दगी के दर्द

ऐसा कहा गया है-


किसने कहे हैं उनके परिचय में 

इतने बड़े-बड़े झूठ?

किसने ?


निश्चय ही वह हमारी जमात का

खाया-पीया आदमी होगा....

सच्चाई को धुन्ध में लपेटता 

एक निर्लज्ज सौदागर 


जरूर वह शब्दों से धोखा करता हुआ 

 कोई कवि होगा 

मस्तिष्क से अपाहिज!

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अखबार बेचती लड़की

अखबार बेचती लड़की

अखबार बेच रही है या खबर बेच रही है

यह मैं नहीं जानती

लेकिन मुझे पता है कि वह

रोटी के लिए अपनी आवाज बेच रही है


अखबार में फोटो छपा है

उस जैसी बदहाल कई लड़कियों का

जिससे कुछ-कुछ उसका चेहरा मिलता है

कभी-कभी वह तस्वीर देखती है

कभी अपने आप को देखती है

तो कभी अपने ग्राहकों को


वह नहीं जानती है कि आज के अखबार की

ताजा खबर क्या है

वह जानती है तो सिर्फ यह कि

कल एक पुलिस वाले ने

भद्दा मजाक करते हुए धमकाया था

वह इस बात से अंजान है कि वह अखबार नहीं

अपने आप को बेच रही है

क्योंकि अखबार में उस जैसी

कई लड़कियों की तस्वीर छपी है

जिससे उसका चेहरा मिलता है!

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अभी खूँटी में टाँगकर रख दो माँदल

ऐ मीता!

मत बजाओ 

जब-तब  बाँसुरी


कह दो अपने संगी-साथी से

बजाएं नहीं असमय ढ़ोल-माँदल


रसोई में भात पकाते

थिरकने लगते हैं मेरे पाँव

मन उड़ियाने लगता है 

रूई के फाहे-सा दसों दिस


अभी बहुत सारा काम पड़ा है

घर गृहस्थी का

गाय गोहाल के गोबर में फँसी है

लानी है जंगल से लकड़ियाँ भी

घड़ा लेकर जाना है पानी लाने झरने पर 

और पंहुचाना है खेत पर बापू को कलेवा 


देखो सबकुछ गड़बड़ हो जाएगा

सुननी पड़ेगी माँ से डाँट

इसलिए मेरा कहा मानो

अभी रख दो छप्पर  में खोंसकर बाँसुरी 

टाँग दो खूँटी पर माँदल  

और लाओ अपनी कला 

अँचरा में बाँधकर रख लूँ मैं 


लौटा दूँगी वापस बँधना में

तब जी भरके बजाना

मैं भी मन-भर नाचूँगी संग तुम्हारे


तब तक के लिए लाओ 

तुम्हारी कला

अँचरा में बाँधकर रख लूं मैं!

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निर्मला पुतुल 

जन्म: 6 मार्च 1972, दुमका, झारखण्ड

शिक्षा: नर्सिंग में डिप्लोमा, स्नातक(राजनीति शास्त्र)

रचनाएँ: 
हिंदी कविता संग्रह-
नगाड़े की तरह बजते शब्द, अपने घर की तलाश में, बेघर सपने, फूटेगा नया विद्रोह(शीघ्र प्रकाश्य) ; 
संथाली कविता संग्रह- ओनोंड़हें
सम्पादन: स्थानीय एवं राष्ट्रीय स्तर के कई हिंदी-संथाली पत्र-पत्रिकाओं का संपादन तथा सह-संपादन|
सम्मान एवं पुरस्कार:
         साहित्य अकादमी, नई दिल्ली द्वारा साहित्य सम्मान, झारखंड सरकार द्वारा राजकीय सम्मान, झारखंड सरकार के कला-संस्कृति, खेलकूद एवं युवा कार्य विभाग द्वारा सम्मानित व पुरस्कृत, हिंदी साहित्य परिषद, मैथन द्वारा सम्मानित, मुकुटबिहारी सरोज स्मृति सम्मान-ग्वालियर, भारत आदिवासी सम्मान, मिजोरम सरकार, विनोबा भावे सम्मान-नागरी लिपि परिषद् दिल्ली, हेराल्ड सैमसन टोपनी स्मृति सम्मान झारखड, बनारसीप्रसाद भोजपुरी सम्मान-बिहार, शिला सिद्धांतकर स्मृति सम्मान, नई दिल्ली, महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा समानित, हिमाचल प्रदेश हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा सम्मानित, राष्ट्रीय युवा पुरस्कार-भारतीय भाषा परिषद् कोलकाता आदि|


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