प्रीति में संदेह कैसा
प्रीति में संदेह कैसा?
यदि रहे संदेह, तो फिर--
प्रीति कैसी, नेह कैसा?
प्रीति में संदेह कैसा!
ज्योति पर जलते शलभ ने
धूप पर आसक्त नभ ने
मस्त पुरवाई-नटी से
नव प्रफुल्लित वन-विभव ने ---
प्रश्न पूछा-'कोई नित-नित
परिजनों से भी सशंकित
हो अगर तो गेह कैसा?'
प्रीति में संदेह कैसा!
नींद पर संदेह दृग का
पंख पर उड़ते विहग का
हो अगर संदेह मग पर
प्रीति-पग के नेह-डग का
तो कहा प्रिय राधिका ने
नेह-मग की साधिका ने
बूँद बिन घन-मेंह कैसा ?
प्रीति पर संदेह कैसा!
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मिलना और बिछुड़ना दोनों जीवन की मजबूरी है|
उतने ही हम पास रहेंगे जितनी हममें दूरी है |
शाखों से फूलों की बिछुड़न, फूलों से पंखुड़ियों की
आँखों से आँसू की बिछुड़न, होंठों से बाँसुरियों की
तट से नव लहरों की बिछुड़न, पनघट से गागरियों की
सागर से बादल की बिछुड़न, बादल से बीजुरियों की
जंगल जंगल भटकेगा ही, जिस मृग पर कस्तूरी है|
उतने ही हम पास रहेंगे, जितनी हममें दूरी है|
सुबह हुए तो मिले रात-दिन, माना रोज बिछुड़ते हैं
धरती पर आते हैं पंछी, चाहे ऊँचा उड़ते हैं
सीधे सादे रस्ते भी तो, कहीं-कहीं पर मुड़ते हैं
अगर ह्रदय में प्यार रहे तो टूट टूटकर जुड़ते हैं
हमने देखा है बिछुडों को, मिलना बहुत जरूरी है|
उतने ही हम पास रहेंगे, जितनी हममें दूरी है|
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चीजें बोलती हैं
अगर तुम एक पल भी
ध्यान देकर सुन सको तो
तुम्हें मालूम होगा
कि चीजें बोलती हैं|
तुम्हारे कक्ष की तस्वीर
तुमसे कह रही है
बहुत दिन हो गए तुमने मुझे देखा नहीं है
तुम्हारे द्वार पर यूं ही पड़े
मासूम ख़त पर
तुम्हारे चुम्बनों की एक भी रेखा नहीं है
अगर तुम बंद पलकों में
सपना कुछ बन सको तो
तुम्हें मालूम होगा
कि वे दृग खोलती हैं|
वो रामायण
कि जिसकी ज़िल्द पर जाले पड़े हैं
तुम्हें ममता भरे स्वर में अभी भी टेरती है|
वो खूँटी पर टँगे
जर्जर पुराने कोट की छवि
तुम्हें अब भी बड़ी मीठी नज़र से हेरती है\
अगर तुम भाव की कलियाँ
हृदय से चुन सको तो
तुम्हें मालूम होगा
कि वे मधु घोलती हैं|
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दिन दिवंगत हुए
रोज़ आंसू बहे, रोज़ आहात हुए
रात घायल हुईं, दिन दिवंगत हुए!
हम जिन्हें हर घड़ी याद करते रहे
रिक्त मन में नई प्यास भरते रहे
रोज़ जिनके ह्रदय में उतरते रहे
वे सभी दिन चिता की लपट पर रखे-
रोज़ जलते हुए आखिरी ख़त हुए!
दिन दिवंगत हुए!
शीश पर सूर्य को जो सँभाले रहे
नैन में ज्योति का दीपक बाले रहे
और जिनके दिलों में उजाले रहे
अब वही दिन किसी रात की भूमि पर
एक गिरती शाम की छत हुए!
दिन दिवंगत हुए!
जो अभी साथ थे, हाँ अभी, हाँ अभी
वे गए तो गए, फिर न लौटे कभी
है प्रतीक्षा उन्हीं की हमें आज भी
दिन कि जो प्राण के गह में बंद थे
आज चोरी गई वो ही दौलत हुए!
दिन दिवंगत हुए!
चाँदनी भी हमें धूप बनकर मिली
रह गई ज़िन्दगी की कली अधखिली
हम जहाँ हैं वहाँ रोज़ धरती हिली
हर तरफ़ शोर था और इस शोर में
ये सदा के लिए मौन का व्रत हुए!
दिन दिवंगत हुए!
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बदरी बाबुल के अंगना
बदरी बाबुल के अंगना जइयो
जइयो बरसियो कहियो
कहियो कि हम हैं तोरी बिटिया की अँखियाँ
मरुथल की हिरणी है गई सारी उमरिया
कांटे बिंधी है मोरे मन की मछरिया
बिजुरी मैया के अंगना जइयो
जइयो तड़पियो कहियो
कहियो कि हम हैं तोरी बिटिया की सखियाँ
अबके बरस राखी भेज न पाई
सूनी रहेगी मोरे वीर की कलाई
पूरवा भईया के अंगना जइयो
छू-छू कलइया कहियो
कहियो कि हम है तोरी बहना की रखियाँ
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कुंवर बेचैन
पूरा नाम : डॉ. कुंवर बहादुर सक्सेनाजन्म: 1 जुलाई 1942, मृत्यु: 29 अप्रैल 2021
शिक्षा- एम.कॉम, एम.ए.हिंदी, पीएच. डी.
रचनाएँ: गीत संग्रह- पिन बहुत सारे, भीतर सांकल बाहर सांकल, उर्वशी हो तुम, झुलसो मत मोरपंख, नदी पसीने की, दिन दिवंगत हुए, लौट आये दिन, कुँवर बेचैन के नवगीत, एक दीप चौमुखी|
ग़ज़ल संग्रह- शामियाने कांच के, महावर इंतज़ारों का,रस्सियाँ पानी की, पत्थर की बाँसुरी, दीवारों पर दस्तक, नाव बनता हुआ कागज़, आग पर कंदील, आँधियों में पेड़, आँगन की अलगनी, तो सुबह हो,कोई आवाज़ देता है, धूप चली मीलों तक, आंधियां धीरे चलो, खुशबू की लकीर, आठ सुरों की बाँसुरी, हलंत बोलेंगे, मौत कुछ सोच के तो आएगी|
अतुकांत कविता संग्रह- शब्द : एक लालटेन, नदी तुम रुक क्यों गईं|
महाकाव्य - प्रतीक पांचाली
अन्य - कह लो जो कहना हा, दो होठों की बात, पर्स पर तितली(हाइकु), ग़ज़ल का व्याकरण|
उपन्यास- मरकत द्वीप की नीलमणि, जी हाँ, मैं गज़ल हूँ
यात्रा वृत्तांत- बादलों का सफ़र|
पुरस्कार एवं सम्मान- साहित्य भूषण सम्मान, हिंदी गौरव सम्मान, राष्ट्रीय कवि प्रदीप सम्मान, कन्हैया लाल सेठिया सम्मान, हाउस ऑफ़ कॉमन्स, यू.के. सम्मान, राष्ट्रपति ज्ञानी जेल सिंह तथा डॉ. शंकरदयाल शर्मा द्वारा सम्मानित, इनके अतिरिक्त देश-विदेश की लगभग १०० से भी अधिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित एवं पुरस्कृत|
फिल्मों तथा आकाशवाणी में गीत: कई देशों की यात्राएं |
वातायन साहित्य पुरस्कार से सम्मानित हमारे प्रिय कविवर बेचैन जी को सादर नमन। उनकी रचनाओं सेक्स जी नहीं अघाता। ❤️🙏🏼❤️
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