बुधवार, 1 नवंबर 2023

लीलाधर मंडलोई


कि नमक रोटियों में


सुबह-शाम समुद्र से उठता है

सफ़ेद झक्क धुआँ

फिर भी समुद्र से नहीं आतीं

खाँसते-खाँसते बेदम होने वाली आवाज़ें


इस बार कहूँगा माँ से

चली चले मेरे साथ

और पकाकर देखे समुद्र पर रोटियाँ

जहां धुआँ होता है अत्यधिक 

लेकिन नहीं होती भीतर तक हिला देने वाली खाँसी


माँ जब पकाएगी रोटियाँ

उनमें होगा स्वाद समुद्र का

और कितना किफ़ायती और स्वादिष्ट होगा

रोटियों का पकना कि संभव है

नमक रोटियों में अपने आप पहुँचे


समुद्र पर खाते हुए रोटियाँ

पहुँचेगा समुद्र अपने आप भीतर 


और हम स्वाद का समुद्र हो जाएँगे एक दिन 

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याद आए पिता


उस समय जबकि अपने अवचेतन में 

मैं बढ़ रहा था गूलर के उस आकर्षक पेड़ की सिम्त 

टकराया एक नुकीले पत्थर से और

उठी रक्त और दर्द की लहर

तिस पर बिन बताए अपने साथी को 

मैं उस आनंद में डूबने के यत्न में बहोत 


देखा उसने और चुपचाप हँसिए से

खुरचने लगा उसकी छाल

कूट के उसे पीसने लगा पत्थर पे

कि हो उठे वह रसायन कोई जादू


घाव पर लेप करते ही हुआ कोई चमत्कार

कि दौड़ पड़ी देह में एक ठंडक-सी 

और खून का बहना एकदम बंद


मैंने धन्यवाद में की अपनी आँखें नत 

और टिका के पीठ बैठ गया 

याद आए पिता 

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जलस्वप्न


नारियल के उस बड़े दरख़्त में अटका है चाँद

और मैं जा सकता हूँ पेड़ की छाया से होता हुआ 

जल जहाँ सबसे ज्यादा प्रसन्न है


जहाँ सबसे ज्यादा प्रसन्न है वह

गहरी नींद में वहाँ सोए हैं मेरे बच्चे


अँधेरा हालाँकि बढ़ रहा है चतुर्दिक

बच्चों की नींद में है जलस्वप्न


मैं लौट सकता हूँ आश्वस्त

बच्चों के स्वप्न में कहीं नहीं है ऑक्टोपस


बच्चों के नींद में बच्चों का स्वप्न है अब तक 

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क्षमायाचना


हमारे दुःख इतने एक सरीखे थे कि 

लड़ने के आलावा हमें

कुछ और सोचना नहीं चाहिए था

और जिसे हम मानके चले थे लड़ाई

वह दरअसल एक भ्रम था जो 

बुना गया हमारे चारों तरफ़


बाज़ दफ़ा हम कहना चाहते थे बेटियों से

कि हमारी सिरजी दुनिया 

उनके क़ाबिल नहीं 

कि वहाँ अंत तक उनके हिस्से कुछ भी नहीं 


एक ऐसी चुस्त घेराबंदी थी हमारे आसपास

कि जिसमें लड़ने के सारे रास्ते

बंद कर रखे थे पुरखों ने और

मान-मर्यादा के ऐसे क़ानून 

कि पिंजरों में कैद पक्षी की-सी हालत 


हम बार-बार बोलना चाहते थे कि

हमारी दुनिया से मुक्त हो जाना ही

अंतिम जुगत थी लेकिन इतना साहस भी न था 

कि हमारे गले में लटके थे धर्मग्रन्थ


लगता तो यहाँ तक था हमें

कि बदल देंगे वह प्रारूप जिसमें 

रेहन रख छोड़ें हैं हमने तुम्हारे सपने

हँसी और अकूत ताक़त 

कि असंभव हो उठेगा दूसरा

कोई भी नामुआफ़िक क़ानून


हम सचमुच करना चाहते थे फ़तह 

उस क़िले को जिसमें बंद था

तुम्हारी मुक्ति का बीज-मन्त्र

कभी मुक्त न हो सके अव्वल तो हम ख़ुद

कि इतना सख्त इंतज़ाम


हम गुनाहगार हैं 

पहली फुरसत में छोड़ जाना हमें

कि हमें खोजना ही मुक्ति के रास्ते पहला क़दम

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कुबड़ा यथार्थ


तीन फुट की सीम

निहुरी-निहुरी कमर

एक पूरी उमर

कोयला ढ़ोती रही

भददू पैदा नहीं हुआ कुबड़ा

लेकिन मरा जब 

सब कह रहे थे  

मुश्किल था उसे सीधे बाँध पाना 


मैंने एक कुबड़े यथार्थ को दिया कंधा इस देश में

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डोंगी का गीत 


दुःख में हैं हम सब और कचोट मन में

कि पेड़ तुम्हें काटना पड़ा, करते हुए कोमल पत्तों को जुदा

काटीं शाखाएँ भी, निकालकर मज़बूत तना

छेदते रहे अस्त्रों से बीचों-बीच

जब टपक रहे थे हरे आँसू अनवरत पेड़ से

हमारे भीतर ललक थी डोंगी की


जूझते हुए ख़ुद से बने हमने डोंगी 

हो सकते थे जब औरों की तरह प्रसन्न

व्यथित थे सबके-सब, तब भी


चीरते हुए समुद्र का विराट सीना

करेंगे शिकार अब मछली और कछुओं का 

भर उठेगी डोंगी खुशबू से 

लौटेंगे शिकार लिए पहले-पहल जब

पहुँचेंगे बिना चूक उस कटे-बचे पेड़ तक

और भेटेंगे शिकार का पहला हिस्सा, करेंगे क्षमायाचना

कि किया हमने जीवन  नष्ट 

रखेंगे सदैव ध्यान कि रखें डोंगी 

बचे पेड़ के उसी कटे हिस्से के पास

कि वह महसूस कर सके

जुदा अंग का अपने पास होना 

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लीलाधर मंडलोई


                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                           लीलाधर मंडलोई का जन्म मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिला के 

गुढ़ी नामक गाँव में १९५४ के जन्माष्टमी के दिन हुआ था | आपकी              शिक्षा भोपाल और रायगढ़ में हुई तथा उच्च शिक्षा हेतु १९८७ में काॅमनवेल्थ रिलेशंस ट्रस्ट, लंदन की और से आमंत्रित किए गए |  

रचनाएँ - मूलतः कवि लीलाधर मंडलोई ने गद्य-लेखन में भी अपनी दक्षता का परिचय दिया है | इनकी प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं - रात-बिरात, घर-घर घूमा, मगर एक आवाज़, देखा-अदेखा, क्षमायाचना, उपस्थित है समुद्र, काल बाँका तिरछा|
कविता का तिर्यक(आलोचना), काला पानी(यात्रा वृत्तांत), दाना पानी(डायरी) आदि मुख्य गद्य रचनाएं हैं |                                                                            

सम्मान- पुश्किन सम्मान, रज़ा सम्मान, शमशेर सम्मान, नागार्जुन सम्मान, रामविलास शर्मा सम्मान, वागीश्वरी सम्मान हिंदी अकादमी सम्मान आदि|

फिल्म पटकथा, निर्माण एवं निर्देशन में भी प्रवृत|





 

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